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________________ [१९८ ] पंच पापानि कान्येव तत्त्यागाद्वा व्रतानि च १. प्रश्न: - हे गुरो ! पांच पाप कौन २ हैं और उनके त्यागा करनेते व्रत कहलाते हैं ? भवन्ति दुःखिनो जीवा म्रियन्ते प्राणनाशतः । ज्ञात्वेति सर्वजीवानां योनिस्थानानि यत्नतः २७ केषामपि च जीवानां प्रमादान्नैव हिंसनम् । स्यादहिंसावतं पूतं को स्वपरात्मरक्षकम् ॥२८॥ उत्तर: – ये संसारी प्राणी प्राणोंके नाश होने से अत्यंत दुःखी होते हैं और मर जाते हैं । अत एव भव्य जीवों को सबसे पहले यत्नपूर्वक जीवोंकी योनिस्थानोंको जानना चाहिये और फिर अपने प्रमादसे किसी भी जीवकी हिंसा नहीं करनी चाहिये | इसको अहिंसावत कहते हैं । यह अहिंसाव्रत पवित्र है और अपने आत्माकी तथा अन्य सब जीवोंकी रक्षा करनेवाला है || ४२७||४२८|| त्यक्त्वा मिथ्यावचो निंद्यं स्वपरात्मविघातकम् शरक्रियाकारि नितान्तं भ्रांतिभीतिदम् ॥ यथार्थं शांतिदं मिष्टं वैरक्लेशादिनाशकम् । सापेक्षमीदृशं वाक्यं तत्सत्यं यत्र भाष्यते ४३०
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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