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________________ मन वचन काय और कृत कारित....अनुमोदना से क्रोध मान माया लोभ इन चारों कषायोंका त्याग कर, व्रतोंको नाश करनेवाले अतिचारोंका त्याग कर, सबतरह के भयोंका त्याग कर और ममत्व बुद्धिका त्याग कर केवल अपने आत्माके आश्रित होकर इच्छानुसार फल देनेवाले अहिंसादिक व्रतोंमें तथा अहिंसादिक व्रतोंको प्राप्त कराने वाले और बढानेवाले शीलोंमें अपनी प्रवृत्ति करना सुख देनेवाली व्रतोंकी शुद्धि कहलाती है। इसीको शील और व्रतों अतिचाररहित पालन करना कहते हैं ।२७१॥२७२ त्यक्त्वा प्रमादं विषयस्य चिन्तां, पंचास्तिकायस्य यथास्थितस्य । वा सप्ततत्त्वस्य निजात्मनोऽपि, षड्द्रव्यलोकस्य यथार्थधर्मः ॥१७॥ विबुध्यते यत्र यथार्थचि है, र्वा पीयते स्वात्मरसः सदैव । ज्ञानोपयोगः सुखदोऽप्यभीक्ष्णः, सदा सुभव्यहृदि धारणीयः॥२७४ ' प्रमाद और विषयोंकी चिन्ताओंको छोडकर यथार्थ स्वरूपको धारण करनेवाले पांचों अस्तिकायोंके र.थार्थ धर्मको वा स्वरूपको समझना, अथवा सातों तत्त्वोंके यथार्थ
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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