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________________ [१२२] समझे जाते हैं अथवा दीर्घ संसारमें परिभ्रमण करनेवाले समझे जाते हैं । जिसप्रकार कोई मनुष्य हाथमें दीपक लेकर भी स्वयं अंधे कूपमें गिरता है उसीप्रकार उन लोगोंको महामूर्ख समझना चाहिये ।। २२८ - २३३ ॥ सज्जातिं च सुधर्मं वा त्यक्त्वा ये पुरुषाः स्वयम् । निजेच्छया प्रवर्तन्ते कीदृशा वद ते गुरो ! प्रश्न: - हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि जो पुरुष अपनी सज्जाति और श्रेष्ठ धर्मको छोडकर स्वयं इच्छानुसार प्रवृत्ति करते हैं कैसे हैं ? त्यक्त्वा स्वमक्षदं धर्मं श्रेष्ठां जातिं कुलं तथा । जनसंख्यादिवृद्ध्यर्थं विषयार्थं च केवलम् ॥ २३४ यस्य कस्य समं याभिः काभिः कन्याभिरेव ये । कारयन्ति विवाहं चान्यायतोऽपि धनार्जनम् ॥ लज्जामपि परित्यज्य केवलोदरपूर्तये । यत्र कुत्रापि लब्ध्वान्नं गृह्णन्ति स्वाद्वभीप्सितं ॥ ते साक्षात् पतिताः सन्ति पशवः पापिनस्तथा । दुर्गतिं प्राप्य ते जीवाः सहन्ते ती दुःखतां ॥ उत्तरः- जो लोग स्वर्ग मोक्ष देनेवाले धर्मको छोडकर, तथा श्रेष्ठ जाति और कुलको छोडकर, केवल विषय सेवन
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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