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________________ हृदयमें सुशीलता और सज्जनताका बीज बो देते हैं तथा वही साधु उन दुष्टोंके हृदयमें श्रेष्ठ बुद्धिका बीज बो देते हैं। उनका स्वभाव ही ऐसा है ॥२०७१२०८।२०९।२१०॥ स्वात्मा विलोक्यते चाक्षः स्वात्मना मनसाथवा ? प्रश्न :-हे गुरो ! यह अपना आत्मा इंद्रियोंके द्वारा देखा जाता है वा मनके द्वारा देखा जाता है अथवा अपने ही आत्माके द्वारा देखा जाता है ? इंद्रियैर्मनसात्मानं ज्ञातुं द्रष्टुं सुखाय च। मूढा जना यतन्ते ये मुख्या मूर्खेषु ते मता:।२११॥ वाकायमानसाक्षैश्च पुद्गलानेव केवलम् । रसस्पर्शात्मकं द्रष्टुं ज्ञातुं वा शक्नुवन्ति च २१२ चिन्मात्रमूर्तिमात्मानं नैव स्पर्शादिवर्जितम् । आत्मावलोकने ज्ञेयमात्मवोधे परोक्षतः ॥२१३॥ बाकायमानसाक्षाणां साहाय्यमात्रमेव च । आत्मना चात्मने चात्मात्मानमात्मनि चात्मनः॥ विलोकनं परिज्ञानं भवेदेव स्वभावतः । यथा दीपस्य साहाय्याद् घटादि प्रविलोक्यते२१५
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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