SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [९३] सम्यक्त्वमेवास्ति शिवप्रदं हि, संसारमूलस्य विनाशकं च । क्रोधस्य लोभस्य सुशामकं तत् , मनोविकारस्य भवप्रदस्य ॥१६९॥ मिथ्यात्वमेवास्ति भवप्रदं हि, निरोधकं मोक्षसुखादिकस्य । आशापिशाचस्य विवर्द्धकं तत, संसारवह्नविपरीतबुद्धेः ॥१७॥ उत्तरः-इस संसारमें सम्यग्दर्शन मोक्ष देनेवाला है, जन्ममरणरूप संसारके कारणों को नाश करनेवाला है, क्रोधको शांत करने वाला है, लोभको नष्ट करनेवाला है और संसारको बढानेवाले मनकं विकारोंको नाश करनेवाला है । इसीप्रकार मिथ्यादर्शन जन्म मरण रूप संसारको बढानेवाला है, स्वर्गमोक्ष के सुखोंको रोकनेवाला है, आशारूपी महापिशाचको बढानेवाला है, संसाररूपी अग्निको बढानेवाला है और बुद्धि को विपरीत कर देनेवाला वा विपरीत बुद्धिको बढानेवाला है १६९ ॥ १७० ॥ सदृष्टेविपरीतस्य प्रवृत्तिः कीदृशी प्रभो!
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy