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________________ [७] लिये ललितपरमें हुआ। यों तो आचार्य महाराजके संघमें. सदा ध्यान अध्ययनके सिवाय साधुबों की दूसरी कोई दिनचर्या ही नहीं है। परंतु ललितपुर चातुर्माससे नियमपूर्वक अध्ययन प्रारंभ हुआ। संघमें क्षुल्लक ज्ञानसागरजी जो आज मुनिराज सुधर्मसागरजीके नामसे प्रसिद्ध हैं, विद्वान् व आदर्श साधु थे । उनसे प्रत्येक साधु अध्ययन करते थे। इस ग्रंथके कर्ता श्री ऐल्लक पार्श्वकीर्तिने भी उनसे व्याकरण, सिद्धांत व न्यायको अध्ययन करने के लिये प्रारंभ किया। ____ आपको तत्वपरिज्ञानमें पहिलसे अभिरुचि, स्वाभाविक बुद्धि तेज, सतत अध्ययनमें लगन, उसमें भी ऐसे विद्वान् संयमी विद्यागुरुवोंका समागम, फिर कहना ही क्या ? आप बहुत जल्दी निष्णात विद्वान् हुए। इस बीचमें सोनागिर सिद्ध क्षेत्रा में आपको श्री आचार्य महाराजने दिगम्बर दीक्षा दी उस समय आपको मुनि कुंथुसागरके नामसे अलंकृत किया। आपके चारित्रमें वृद्धि होने के बाद ज्ञानमें भी नैर्मल्य बढ गया । ललितपुर च तुर्माससे लेकर ईडरके चातुर्मास पर्यंत आप बराबर अध्ययन करते रहे। आज आप कितने ऊंचे दर्जेके विद्वान् बन गये हैं यह लिखना हास्यास्पद होगा। आपकी विद्वत्ता इसीसे स्पष्ट है कि अब आप संस्कृतमें ग्रंथका भी निर्माग करने लग गये हैं। कितने ही वर्ष अध्ययन कर बडी २ उपाधियोंसे विभूषित विद्वानको हम आपसे तुलना नहीं कर सकते । क्यों कि आपमें केवल ज्ञान ही नहीं है अपितु चान्त्रि जो कि ज्ञानका फल है वह पूर्ण अधिकृत होकर आपमें विद्यमान है।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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