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________________ [८७] प्रश्न:-हे गुरो ! इस संसारमें कैसा मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है ? महाव्रतं वा समितिं दधानो, निजात्मनिष्ठश्चरमांगधारी । कर्तुं स्वराज्यं यतते सदैव, खात्मानुभूत्यां स्वपदेऽस्ति लीनः॥१५७॥ ध्यानेन शुक्लेन च कर्महंता, द्रष्टा प्रबोद्धा च निजात्मनो यः । पूर्वोक्तभावैरिति यश्च युक्तः, स एव योगी भुवि मोक्षभागी ॥१५८॥ उत्तरः-जो मुनि महाव्रत वा समितिको धारण करते हैं, जो अपने आत्मामें सदा निमग्न रहते हैं, चरमशरीरी हैं, जो मोक्षरूप स्वराज्य करनेके लिये सदा प्रयत्न करते रहते हैं, स्वात्मानुभूति और स्वात्मपदमें सदा लीन रहते हैं, जो शुक्लध्यानकं द्वारा कर्मोको नाश करनेवाले हैं और अपने शुद्ध आत्माके ज्ञाता दृष्टा है इस प्रकार जो मुनि शुद्धभावोंसे सुशोभित हैं वेही मुनि इस संसारमें मोक्ष जाते हैं ।। ७५१ ॥ १५८ ॥ लोके सुपात्रदानेन किं जीवो लभते फलं ?
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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