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________________ [५] सब कारोभार तुम ही चलायो । परंतु रामचंद्र उन्हे दुःख न हो इस विचारसे कुछ दिन रहा भी परंतु मन मनमें यह विचार किया करता था मैं अपना भी घरदार छोडता चाहता हूं । इनकी संपत्ति को लेकर मैं क्या करूं । रामचंद्र की इस प्रकारकी वृत्तिसे श्वसुरको दुःख होता था। परंतु रामचंद्र लाचार था। जब उस ने सर्वथा गृहत्याग करनेका निश्चय ही करलिया तो उनके श्वसुर. को बहुत अधिक दुःख हुआ । दैवात् इस बीचमें मातापिताबोंका स्वर्गवास हुआ। विकराल कालकी कृपासे एक भाई व बहिनने भी विदाई लो। अब रामचंद्र का चित्त और भी उदास हुआ। उसका बंधन छूट गया। अब संसारकी अस्थिरताका उन्होंने स्वानुभवसे पक्का निश्चय किया और. उसका चित्त और भी धर्ममार्गपर स्थिर हुआ। इतने में भाग्योदवसे ऐनापुरमें प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद आचार्य शांतिसागर महाराजका पदार्पण हुआ । वीतरागी तपोधन मुनिको देखकर रामचंद्रके चित्तमें संसारभोगसे वि.क्ति उत्पन्न होगई । प्राप्त सत्समागमको खोना उचित नहीं समझकर उन्होंने श्री आचार्य चरणमें आजन्म ब्रह्मचर्यव्रतको ग्रहण किया । .. - सन् १९२५ फरवरी महीनेका बात है । श्रवणबेलगोल महाक्षेत्रमें श्री बाहुबलिस्वामीका महामस्तकाभिषेक था । इस महाभिषेकके समाचार पाकर ब्रह्मचारिजीने वहां जानेकी इच्छा की। श्रवणबेलगुल जानेके पहिले अपने पास जो कुछ भी संपत्ति थी उसे दानधर्म आदि कर उसका सदुपयोग किया । एवं श्रवण
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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