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________________ २९५ मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पुट्ठा य 'किं गुणोयहि ! वच्छे ! तं इत्थ एक्किया रण्णे ?' । सा वि असेसं वत्तं जं जहवत्तं परिकहेइ ॥१३९॥ पेच्छह विहिणो दुव्विलसियं ति भणिऊण नेइ तं वहणे । ण्हाणाई काराविय भुंजावइ मोयगाईयं ॥१४०॥ चलिओ य ततो कमसो पत्तो अणुकूलवायजोगेण । बब्बरकूले तत्तो ताडावइ पडउडि रम्मं ॥१४१॥ उत्तारिय भंडाई पडउडिमज्झम्मि नम्मयं ठविउं । गिहिय उवायणाइं गच्छइ नरनाहपासम्मि ॥१४२॥ नरवइणा सम्माणे विहिए तो जाइ निययठाणम्मि । जावऽच्छइ कइ वि दिणे ता जं जायं तयं सुणह ॥१४३॥ अत्थि तहिं वत्थव्वा हरिणी नामेण सुंदरा गणिया । नीसेसकलाकुसला गोरव्वा नरवरिंदस्स ॥१४४॥ वेसायणप्पहाणा उब्भडलावण्णजोव्वणुम्मत्ता । सोहग्गवरपडागा सुपसिद्धा रिद्धिपरिकलिया ॥१४५।। सा रण्णा परिभणिया समत्थ वेसाण भाडियविभागं । गिण्ह तुम मज्झं पुण विढविसि जं तं तयं देयं ॥१४६॥ जो य इह पोयसामी आगमिही सो य अट्ठसहसं तु । दीणाराणं देही तुझं मज्झ प्पसाएण ॥१४७॥ एसा तत्थ ववत्था वेसाणं अत्थि राइणा समयं । हरिणीए तओ चेडी पट्टविया वीरदासस्स ॥१४८।। पासम्मि तीए भणिओ सो जह 'वाहरइ रिण्णिया. तुब्भे' । तेण वि सा पडिभणिया "जइ वि हु रूवाइगुणकलिया ॥१४९॥ अण्णित्थी तह वि अहं भुंजामि न वज्जिउं नियकलत्तं" । तीए वि तओ भणियं 'आगंतव्वं तए तह वि' ॥१५०॥ तो जाणिय भावत्थो, अप्पइ दीणारसहसमट्ठहियं ।। सा वि तयं घेत्तूणं, वच्चइ हरिणीए पासम्मि ॥१५१॥
SR No.022287
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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