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________________ जिणभणियाऽसद्दहणं, विवरीयपरूवणं च जं विहियं । तं सव्वं भव्वेणं, आलोएयव्वयं सम्म । ३०५५॥ इय छटुं गिहिगोयर-माऽऽलोयणदाणदारमुवइटुं। जंपेमि किंपि संपइ, आउपरिण्णाणदारमऽहं ॥ ३०५६॥ अह दंसियविहिणाऽऽलो-यणाए दिण्णाए सो गिही कोई । होज्ज सेहू असहू वा, समग्गमाऽऽराहणं काउं ॥ ३०५७॥ जो तत्थ सहू सो वि य, नीरोगंऽगो तहेयरो य भवे । असहू वि य दुवियप्पो, एवं चिय होइ नायव्वो ॥ ३०५८॥ तत्थ य सहु व्व असहू, समीवसंपत्तमरणकालो जो। सो पुव्वभणियविहिणा, भत्तपरिण्णं लहु करेज्जा ॥३०५९ ।। आसण्णाऽणासण्णं, सेसाणं पुण वियाणिउं मरणं । भत्तपरिणाऽऽइविही, तक्कालुचिया भवे जुत्ता ॥ ३०६०॥ आसण्णेयरमच्चू, कालविभागो य जइ वि सव्वण्णुं । न विणा नज्जइ सम्मं, विसेसओ दूसमासमए ॥ ३०६१॥ तस्स परिण्णाणऽट्ठा, केइ उवाए तहा वि परिथूले। अहमुवइसामि तव्विसय-सत्थसामत्थजोगेणं । ३०६२॥ जह जलहराउ वुट्ठी, जह दीवाउ तमोगयपयत्था । जह धूमाओ अग्गी, जह पुष्फाओ फलुप्पाओ ॥ ३०६३॥ बीयाओ अंकुरो जह, तह एयद्दारसमुदयाओ वि । लक्खिज्जइ पाएणं, कुसलेहिं मरणकालो वि ॥ ३०६४॥ देवय-सउण-उवस्सुइ, छाया-नाडी-निमित्त-जोइसओ। सुविणग-अस्टुि-जंत-प्पओग-विज्जाहिं कालगमो ॥३०६५ ।। अंगुट्ठखग्गदप्पण-कुड्डाइसु पवरविज्जसत्तीए। अवयारिया विहीए, तहाविहा देवया का वि ॥३०६६॥ साहेज्ज पुच्छियऽत्थं, नवरं विहिणा दढं सुइब्भूओ। निच्चलमणो सरेज्जा विज्जं तद्देवयाऽऽहवर्णि ॥ ३०६७॥ विज्जा एत्थं पण "ऊँ नरवीरे ठ ठ" इम त्ति नायव्वा । रविससिगहणे एसा, अठुत्तरदससहस्साण ॥ ३०६८॥ जावेण साहियव्वा, अह संपत्तम्मि कज्जकालम्मि। अंगुट्ठाइसु लीयइ, अट्ठोत्तरसहसजावेण ॥३०६९॥ तत्तो कुमारियाओ, वंछियमऽत्थं नियंति निब्भंतं । सम्मत्तनिच्चलाणं, णवरं वंछियकरी एसा ॥ ३०७० ॥ अहव सयं चिय सक्खा, अक्खित्तमणा गुणेहिं खवगस्स । तं नत्थि जं न साहइ, केत्तियमिह मरणकालं तु ॥ ३०७१ ॥ सज्जो व गिलाणो वा, सयं परेणं व आउनाणकए। सउणं निरूवएज्जा, अह पढमं तत्थ सज्जकए ॥ ३०७२ ॥ कयदेवगुरुपणामो, पसत्थदियहम्मि परमसुइभूओ। गेहे बहि व सम्मं, परिभावेज्जा सउणभावं ॥ ३०७३ ॥ अहिमूसयकिमिकीडा-कीडियगिहगोहविच्छियाऽऽईणि । रप्फुदेहियफोडा-मंकुणतयाइ अइरित्तं ॥ ३०७४॥ लुयमक्कडियाजालय-भमरीगिहधण्णकीडया लोणं । लेवप्फोडविवण्णं, कारणरहियं भवे अहियं ॥ ३०७५ ॥ उव्वेयकलहझंझा, धणनासो वाहिमरणवसणाई । उच्चाडणं विएसो, सुण्णघरं होइ अचिरेण ।। ३०७६ ॥ अह कहवि कया वि कहिं पि, वायसो सुहपसुत्तऽवत्थस्स । चंचूए चिहुरचयं, चुंटइ ता मरणमाऽऽसण्णं ॥३०७७॥ वाहणसत्थोवाणह-छत्तयछायंगकुट्टणमऽसंको। जस्स किर कुणइ काओ, सो वि लहुं जममुहगमिस्सो ॥३०७८॥ पाएहि महि गाढं, गावो कुइंति अंसुपुण्णऽच्छा । जइ ता न केवलो च्चिय, रोगो मरणं पि तप्पहुणो ॥ ३०७९ ॥ इय सज्जाऽवत्थकए, सउणसरूवं पयासियं किंपि। संपइ गिलाणविसयं पि, किंपि साहेमि निसणेह ॥ ३०८०॥ जइ पिटुंऽतं चट्टइ, सुणहो वलिऊण दाहिणदिसाए। तो मरइ वाहिघत्थो एगदिणब्भंतरे मुणह ॥ ३०८१ ॥ जइ लिहइ उरं तो दोण्णि, वासरे चट्टियम्मि नंगूले । दियहाइं तिण्णि जीवइ, णिवेइयं साणसउणेणं ॥ ३०८२ ॥ जइ सव्वंगं संकोचिऊण, सोवइ निमित्तकालम्मि । तो जाणह बाहिल्लो, गयजीओ तक्खणे जातो ॥ ३०८३ ॥ धुणिऊण कण्णजुयलं, अंगं बलिऊण धुणइ जइ सुणओ । ता मरइ रोगगहिओ, इंदो वि न रक्खिउं तरइ ॥ ३०८४ ॥ वाइयवयणो लाला-मुयंतओ झंपिऊण नयणजुयं । संकोचिऊण अंगं, सोवंतो जमपुरि नेइ ॥३०८५ ॥ वायसपक्खिसमूहो, आउरगेहस्स उवरि जइ मिलिओ। संझासु तीसु दीसइ, तो जाण विणासए जीयं ॥ ३०८६ ॥ जस्स सयणीयगेहे, महाणसे वा ठविन्ति किर कागा। चम्म रज्जु बालं, हड्डु वा सो वि लहु मरिही। ॥३०८७॥ अह एत्तो कित्तिज्जइ, अव्वभिचरियं उवस्सुइदारं । तत्थ पसत्थम्मि दिणे, जाए जणसुयणसमयम्मि ॥३०८८॥ सूरी परंपराऽऽगय-गणहरगणमणऽभिरामणीएण। मंतेणं कण्णजुयं, अभिमंतित्ता पयत्तेणं ॥३०९०॥ पंचनमोक्कारेण वि, अहवा कयदेवयागुरुपणामो । गंधक्खयजुयहत्थो, सियवत्थकउत्तरासंगो ॥३०९१ ॥ आउपरिमाणकए, कयपणिहाणो अणऽण्णचित्तो य परिपिहियकण्णकुहरो, विणिक्खमित्ता सठाणातो ॥ ३०९२॥ १. सहु = समर्थः co
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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