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________________ परितुट्ठमणेण समं, तेण पसुत्ता समत्थरयणि पि। जाए पभायसमए, चिंतियमिय मंतिपुत्तेण ॥ १६६७॥ छंदट्ठियं सुरूवं, समसुहदुक्खं अनिग्गयरहस्सं । धण्णा सुत्तविउद्धा, मित्तं महिलंच पेच्छंति ॥१६६८॥ इति भावेंतेण कया. घरस्स सा सामिणी समग्गस्स। कि वन कीड निक्कवड-पेमपडिबद्धहिययम्मि ॥१६६९॥ इय पइतक्कररक्खस-मालागाराण मज्झओ केण । तच्चागेण कयं दुक्क-रं ति भो ! मज्झ साहेह ॥ १६७०॥ ईसालुएहि भणियं, सामी ! पइणा सुदुक्करं विहियं । परपुरिससमीवे जेण, पेसिया सव्वरीए पिया ॥१६७१॥ भणियं छुहालुएहि, सुदुक्करं रक्खसेण चेव कयं । जेण चिरं छुहिएण वि, न भक्खिया भक्खणिज्जा वि ॥ १६७२॥ अह पारदारिएहि, पयंपियं देव! मालिओ एक्को। दुक्करगारी जेणं, चत्ता सा निसि सयं पत्ता ॥ १६७३ ॥ पाणेण जंपियं होउ, ताव चोरेहिं दुक्करं विहियं । पइरिक्के वि विमुक्का, ससुवण्णा जेहिं सा तइया ॥ १६७४॥ एवं वुत्ते चोरो त्ति, निच्छिउ सोऽभएण मायंगो। गिण्हाविऊण पुट्ठो, कहमाऽऽरामो विलुत्तो त्ति ॥१६७५ ॥ तेणं पयंपियं नाह!, पवरविज्जाबलेण णियएण । कहिओ य वइयरो सेणि-यस्स एसो समग्गो वि ॥ १६७६॥ रण्णा वि संसियं देइ, मज्ज जइ कहवि निययविज्जाओ। सो पाणो ता मुंचह, इहरा से हरह जीयं ति ॥ १६७७॥ पडिवण्णं पाणेणं, विज्जादाणं पि अह महीनाहो। सिंहासणे निसण्णो, विज्जाओ पढिउमाढत्तो ॥ १६७८॥ पुणरुत्तपयत्तुक्कित्तिया वि, रण्णो न ठंति जा विज्जा । सो ता तज्जइ रुट्ठो, न रे! तुमं देसि सम्मं ति ॥ १६७९॥ अभएण भणियमिह देव!, नत्थि एयस्स थेवमवि दोसो। विणयग्गहिया हि विज्जाओ, ठंति फलदा य जायंति ॥१६८०॥ ता पाणमिमं सीहासणम्मि, ठविऊण सयमऽवि महीए। होऊण विणयसारं, पढसु जहा ठंति इण्हिं पि ॥१६८१॥ तह चेव कयं रण्णा, संकंताओ लहुंच विज्जाओ। सक्कारिऊण मुक्को, पाणो अच्चंतपणइ व्व ॥ १६८२ ॥ इय जइ इहलोइयतुच्छ-कज्जविज्जा वि भावसारेण । पाविज्जइ हीणस्स वि, गुरुणो अच्चंतविणएण ॥ १६८३॥ ता कह समत्थमणवंच्छियत्थ-दाणक्खमाए विज्जाए। जिणभणियाए दोएण, विणयविमुहो बुहो होज्ज ॥१६८४॥ अण्णं चपत्थरकया वि देवा. साणिज्झपरा हवंति विणयाओ। जड ता का गणणा अण्ण-वत्थसिद्धीए धीराणं ॥१६८५ ॥ जइ वि सुयनाणकुसलो, होइ नरो हेउकारणविहेण्णू। अविणीयं तहविन तं, समयऽत्थविऊ पसंसंति ॥१६८६॥ संमत्तनाणचारित्त-पमुहगुणहेउविणयकरणपरं। अबहुस्सुयं पि कुसला, बहुस्सुयपयम्मि ठावेंति ॥१६८७॥ जस्स विणओ स नाणी, जो नाणी तस्स सम्मकिरियाओ। सम्मकिरियाओ जस्स उ, सो च्चिय आराहणाजोग्गो ॥१६८८ ॥ तम्हा कल्लाणपरंपराए, संपाडणेक्कपडुयम्मि। विणयम्मि निमेसं पि हु, बुहेण न पमाइयव्वं ति ॥१६८९ ॥ इय संसारमहोयहि-तरीए संवेगरंगसालाए। परिकम्मविहीपामोक्ख-चउमहामूलदाराए ॥ १६९०॥ आराहणाए पणरस-पडिदारमयस्स पढमदारस्स । संखेवेणं भणियं, विणयो त्ति चउत्थपडिदारं ।। १६९१ ॥ विणयपणयस्स वि परं, समाहिविरहम्मि जेण पुरिसस्स। सग्गाऽपवग्गजणणी, न सम्ममाऽऽराहणा घडइ ॥१६९२ ॥ ता एत्तो दारं पिव, मणवंछियसव्वकज्जसिद्धीए। सिद्धीपुरीए पवरं, समाहिदारं पवक्खामि ॥१६९३॥ सो य समाही दुविहो, दव्वे भावे य तत्थ दव्वम्मि। पयइप्पहाणदव्वो-वओगओ जायइ समाही ॥१६९४ ॥ अहवा वि सुदुल्लंभं, पयईए सुंदरं तहा इ8। सई रूवं च रसं, गंधं फासंच जहसंखं । ॥ १६९५ ॥ सोउं दट्टुं भोत्तुं, जिंघित्ता फासिउं समाहाणं । जं पाउणेज्ज पाणी, दव्वसमाही भवे सो उ ॥१६९६ ॥ तेण न इहाऽहिगारो, अहवा सो वि हु कहिं पि केसि पि । भावसमाहिनिमित्तं, इच्छिज्जइ चेव जं भणियं ॥१६९७॥ "मणुण्णं भोयणं भोच्चा, मणुण्णं सयणाऽऽसणं । मणुण्णम्मि अगारम्मि, मणुण्णं झायए मुणी" ॥१६९८॥ भावम्मि समाही पुण, एगंतेणेव चित्तविजयाओ। चित्तविजओ य सम्म, रागद्दोसाण परिहरणा ।। १६९९ ॥ १. दारण = दातरि (सप्तयर्थे तृतीया), २. विहण्णू - विधिज्ञः ૫૦
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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