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________________ असहायसहायत्तं, करेंति जं संजमं करेंतस्स । एएण कारणेणं, नमणिज्जा साहुणो होति ॥ ९९६०॥ न य एत्तो उवयारो, अण्णो वि हु विज्जए जए सारो । जमुवटुंभो कीरइ, पज्जंताऽऽराहणासमए ॥ ९९६१॥ धण्णो य सो महप्पा, जेणं आराहणासुनावाए । दुहमयरनियरकिण्णो, तिण्णो व्व भवण्णवो भीमो ॥ ९९६२॥ अह थेरेहिं भणियं, भयवं! एत्तो कहिं स उववण्णो। कइया य निहयकम्मो, निव्वाणं पाविही कहसु ॥ ९९६३॥ तिहुयणभवणऽब्भंतर-विस्सुयजसवीरनाहसिस्सेण । पढमेण तओ भणियं, एगग्गमणा णिसामेह ॥ ९९६४॥ सो महसेणमुणिवरो, सम्म आराहणाए थिरचित्तो। सुरवइकयप्पसंसा-कुवियाऽमरविहियविग्घो वि ॥ ९९६५॥ झाणाउ निमेसं पि हु, अचलंतो मंदरो व्व काऊण । कालं सव्वट्ठम्मि, भासुरबोंदी सुरो जाओ ॥ ९९६६॥ आउक्खएण तत्तो, चविऊणं एत्थ जंबुदीवम्मि। उप्पज्जंतनिरंतर-जिणचक्किदसारवग्गम्मि ॥ ९९६७॥ पुव्वविदेहे वासे, वासवपुरिमणहराए नयरीए । अवराजियाए जियवेरि-वग्गविक्कंतकित्तिस्स ।। ९९६८॥ कित्तिधरधरावइणो, वयणोहामियमयंकबिबाए । बिबाऽहराए देवीए विजयसेणाऽभिहाणाए ॥ ९९६९॥ मुहपविसंतचिरुग्गय-संपुण्णमयंकसुमिणकयसूओ। गब्भे पाउब्भविही, पुत्तत्तेणं महप्पा सो ॥ ९९७० ॥ अट्ठमराइंदिय-समहियमासेसु नवसु विगएसु। होही य तस्स जम्मो, सोहणनक्खत्ततिहिजोगे.. ॥ ९९७१ ॥ अच्चंतपुण्णपगरिस-आगरिसियमाणसा य संनिहिया। देवा तज्जम्मम्मि, पडिसंतरयं दिसाभोगं ॥ ९९७२ ॥ वायंतमंदपवणं, कीलंतजणं समंतओ काउं। कुंभग्गसो खिविस्संति, पवररयणाई नगरीए ॥ ९९७३॥ अह मंगलमुहलमिलंत-वारविलयासहस्सरमणीयं । रमणीयमणिविभूसण-भूसियनीसेसनयरजणं ॥ ९९७४॥ नयरजणदिज्जमाण-प्पभूयधणतुट्ठमग्गणयलोगं । मग्गणलोउक्कित्तिज्ज-माणपायडगुणप्पसरं ॥ ९९७५ ॥ गुणपसरसवणसरहस-मिलंतसामंतचक्ककयतोसं । वद्धावणयं होही, महया रिद्धीसमुदएणं ॥ ९९७६ ॥ उचियसमयम्मि पियरो, रयणुक्करवरिसणेण य जहत्थं । रयणायरो त्ति नामं, तस्स पइट्ठावइस्संति ॥ ९९७७॥ उम्मुक्कबालभावो, कमेण अहिगयसमत्थसत्थऽत्थो। कइवयसमवयसुइवेस-विउससुवयस्सपरियरिओ ॥ ९९७८॥ पयईए च्चिय विसय-प्पसंगविवरंमुहो भवविरागी। वियरंतो लीलाए, मणहरकाणणपएसेसु ॥ ९९७९ ॥ एगम्मि अवसरे नयरि-पासपरिवत्तिपव्वयनिगुंजे। सो पेच्छिही विसाले, सिलायले अणसणपवण्णं ॥ ९९८०॥ संनिहिनिसण्णमुणिजण-सव्वाऽऽयरदिज्जमाणअणुसहूिँ। विविहतवकिसियकायं, दमघोसऽभिहाणमुणिवसभं ॥९९८१ ॥ तं पेच्छिऊण तस्स य, कत्थ वि य मए वि एरिसाऽवत्था । सयमेव समणुभूय त्ति, ईहापोहं करेंतस्स ॥९९८२ ॥ जाईसरणं उप्पज्जिही लहुं तदणुभावओ सम्मं । सुमरियपुव्वभवऽब्भत्थ-सयलआराहणविहाणो ॥ ९९८३॥ पासं व घराऽऽवासं, विसं व विसए धणं पि निहणं व। पियजोगसुहं दुक्खं व, बुद्धिचक्खूए पेहंतो ॥ ९९८४॥ सव्वविरई पवज्जिउ-कामो वि हुजणणिजणगवयणेण । दारपरिग्गहविमुहो, वसिहि गेहे कइवि वरिसे ॥९९८५॥ नवरं विसालसाला-मणहरगोउरविरायमाणाणि । उत्तुंगसिंगसोहा-पहसियहिमसिहरिसिहराई ॥ ९९८६॥ पवणपकंपिरधयवड-रणंतमणिकिंकिणीमणहराई। हरिणंक-कुमुयखीरोय-फेणफलिहुज्जलपहाई ॥ ९९८७॥ गायतथुणंतपढंत-भव्वहलबोलवाउलदिसाइं। अणवरयपयट्टूसव-कीरंतविसेसपूयाई ॥ ९९८८॥ देवंगदूसविरझ्य-उल्लोयविरायमाणमज्झाई । मणिकुट्टिमतलनिम्मिय-मुत्ताहलवरचउक्काई ॥ ९९८९ ॥ डझंतनिरंतरकुंदुरुक्क-घणसारसुरहिधूवाई। कुसुमोवहारपरिमल-मिलंतरणझणिरभमराई ॥ ९९९०॥ अइसंतकंतसुंदर-सरूवजिणबिंबसोभमाणाई। काराविही विहीए, पउराई जिणिदभवणाई ॥ ९९९१ ॥ अइदुक्करतवचरणोवउत्त-मुणिपज्जुवासणानिरओ। साहम्मियजणवच्छल्ल-संगओ उवसमपहाणो ॥ ९९९२॥ लोगविरुद्धच्चाई, जत्तेणं विजियइंदियग्गामो। सम्ममऽणुव्वयगुणवय-सिक्खावयपालणपहाणो ॥ ९९९३॥ उवसंतवेसधारी, पडिमाऽणुट्ठाणविहियपरिकम्मो । गमिऊण केत्तियं पिहु, कालं निरवज्जवित्तीए ॥ ९९९४ ॥ स महप्पा रायसिरिं, नयरिं धणकणगरयणसंभारं। अम्मापियरो दढनेह-निब्भरं बंधवजणं च ॥ ९९९५॥ ૨૮૨
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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