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________________ सहा इह परमपयपुरप्पह-पयट्टपाणीण परमसत्थाहो । सण्णाणाऽऽइगुणगुरू, परिक्खियव्वो गुरू णिउणं ।। ८८६९॥ तुच्छफलो वि एक्को वि, रूवगो जइ परिक्खिउं गज्झो। परमफलओ गुरू ता, परिक्खियव्वो पयत्तेणं ॥८८७०॥ करितुरयाऽऽइ जह जए, सुगुणं ति मुणिज्जए सुचिंधेहिं । तह सुहगुरू वि नेओ, धम्मुज्जमणाऽऽइलक्खणओ ॥८८७१ ॥ धम्मऽत्थकाममोक्खा, चत्तारि भवंति एत्थ पुरिसत्था । ते सुहगुरूवएसा, लब्भंति विणा किलेसेणं - ॥८८७२॥ इह जोगिणो कयत्था, विसिट्ठनाणाऽवलोइयपयत्था । दक्खा सावाऽणुग्गह-करणे गुरुसंगमा होति ॥८८७३ ॥ तिहुयणभवणऽब्भंतर-पसरंतऽण्णाणतिमिरभरहरणे । सज्जोइदित्तरूवो, पावपयंगक्खए दक्खो ॥८८७४ ॥ वंछियपयत्थपयडण-परो य न भवेज्ज जइ गुरुपईवो। अंधबहिरं इमं तो, जगं वरायं कहं हुन्तं ॥ ८८७५ ॥ गच्छइ य समुच्छेयं, जह नाम सुवेज्जवयणओ वाही । तह सुहगुरूवएसाउ, कम्मवाही वि विण्णेयो ॥ ८८७६ ॥ कलिकालकवलियजए, वंछियविविहफलदाणदुल्ललिओ। अक्खंडगुणो सक्खा, होइ गुरू कप्परुक्खो व्व ॥८८७७॥ सम्मत्तनाणचरणाऽऽ-इएहिं भवजलहितारणसहेहिं । निव्वाणकारणेहि य, गुणेहिं गरुओ गुरू होइ ॥ ८८७८ ॥ देसकुलजाइरूवाऽऽइ-गुणजुओ चत्तसव्वसावज्जो। सुहगुरुदिण्णगुरुपओ, पसममहप्पा गुरू भणिओ ।। ८८७९ ॥ सयलाऽणत्थनिहाणं, मज्जं वज्जेइ जो सयाकालं । मंसंच असुइमूलं, गुरुत्तणं तस्स होइ फुडं ॥८८८०॥ हलखेत्तगाविमहिसी-घरघरिणीपुत्तभंडववहारो । सीसस्स व गुरुणो वि हु, जइ ता सरियं गुरुत्तेण ॥ ८८८१॥ पावाऽऽरंभा सीसस्स, जे उ ते चेव होंति गुरुणो वि। जइ ता लीलाए च्चिय, भवंऽबुरासी अहो ! तिण्णो ॥ ८८८२ ॥ पाणऽच्चए वि पीडं, परस्सन हु सव्वहा विचितेइ । जीवाण जणणिसरिसो, करुणेक्करसो गुरू कहियो ॥ ८८८३॥ विसयामिसे पसत्तो, पुरिसो परवंचणे मणं कुणइ । ता जो विसयविरत्तो, परमत्थेणं स चेव गुरू ॥ ८८८४॥ निच्चं अकयमऽकारिय-मऽणणुमयं सयलदोसपरिहीणं । बालगिलाणाऽऽइए, संभोइत्ता जहाजोगं ॥८८८५॥ वेयावच्चाऽऽइकारणेहिं, इंगालधूमपरिहीणं । जो उवभुंजइ उंछं, सो च्चिय सच्चं गुरू भणिओ। ॥८८८६॥ दव्वं खेत्तं कालं, भावं च पडुच्च णिच्चकालं पि। जो पडिबंधच्चाई, सो च्चिय सच्चं गुरू भणिओ ।।८८८७॥ वासाइ महामुणिणो, तवसुसियतणू वि जत्थ पडिभग्गा । तं घोरबंभचेरं, चरंतओ चेव भावगुरू ॥८८८८॥ निच्चसमुच्छलणपरं, सपरोभयविसयमऽवि कसायऽग्गिं। पसमोवएससलिलेण, जो य उवसामणसमत्थो ॥ ८८८९ ॥ खंतिप्पमोक्खदसविह-निम्मलमुणिधम्मगुणमणिगणस्स । रोहणगिरिभूमिसमो, जिणनिद्दिट्ठो स इट्ठगुरू ।।८८९०॥ पंचसमिओ तिगुत्तो, जमनियमपरायणो महासत्तो । समयाऽमयरसतित्तो, जो सो भणिओ उ भावगुरू ।। ८८९१॥ सक्कयपाययअवहट्ठ-देसीभासाविसेसवयणेहिं । सीसाऽवबोहकुसलो, पियंवओ होइ भावगुरू ।। ८८९२॥ जह रण्णो रंकस्स वि, तहेव समसरिसचित्तवित्तीए । अक्खंतो सद्धम्मं, भावपहाणो गुरू होइ ॥ ८८९३ ॥ समसुहदुक्खो समतिण-मणी य समकणयकयवरो धीरो। समपरिभवसम्माणो, समसुहिसत्तू य होइ गुरू ॥ ८८९४ ॥ सारीरमाणसाऽणेग-दुक्खसंतावतावियजणाण । तुहिणाऽऽयरो व्व सिसिरो, जो होइ गुरुत्तणं तस्स ॥८८९५ ॥ संवेगगब्भहियओ, सम्मं संवेगगब्भवयणो य । संवेगगब्भकिरियो, जो सो परमत्थओ सुगुरू ॥ ८८९६ ॥ सावज्जऽणवज्जगिरं, जाणइ जो वज्जई य सावजं । निरवज्जं कज्जे च्चिय, वज्जरइ य तं गुरु सेयउ ॥८८९७ ॥ सावज्जऽणवज्जाणं, वयणाणं जो न जाणइ विसेसं । वोत्तुं पि तस्स न खमं, किमंग! पुण देसणं काउं ॥८८९८॥ ता हेउवायपक्खम्मि, हेऊओ आगमे य आगमिओ। जो स गुरू इयरो पुण, जिणवयणविराहगो जम्हा ॥८८९९ ॥ नियमइअवराहेणं, असंगयऽत्थाण पोसगो मूढो । जणयइ परस्स बुद्धिं, सव्वण्णू अलियवाई त्ति ॥ ८९००॥ दुरऽहीयकुनयलवमय-विमोहिओ जिणमयं अयाणंतो। वोत्तुं तमऽण्णहा वि हु, कुगईए गमेइ सपरुभयं ॥८९०१॥ ससमयपरसमयविऊ १, संविग्गो २ सेसयाण संवेगं । जणयंतो ३ मज्झत्थो ४, कयकरणो ५ गाहणाकुसलो ॥८९०२ ॥ सत्तुवयारम्मि रओ ७, दढप्पइण्णो ८ ऽणुवत्तओ ९ मइमं १० । अरिहइ जिणिदभणियं, धम्म परिसाए परिकहिउं ॥ ८९०३ ॥ १.सयउ = श्रयतु, ૨પ૧
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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