SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ए त्रण प्रकृतिओ करीने न्यून जाणवी. कारण के-ए सात गुणस्थानमा ए त्रण प्रकृतिओनी उदीरणा न होय । उदीरणाधिकार समाप्त सत्ता १२६. सत्ता आ उपशान्तात् सर्वासाम् । सत्ता एटले कमोनी विद्यमानता । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानथी मांडी उपशांतमोह गुणस्थान सुधी सर्व प्रकृतिओनी (१४८) सत्ता होय छे । १२७. विजिनौ द्वितीयतृतीयौ । प्रथम गुणस्थाने १४८ नी सत्ता. बीजे अने त्रीजे गुणस्थाने जिननाम विना १४७ नी सत्ता होय छे। १२८. अदर्शनत्रिकानन्ताऽनरायुष्कोऽनिवृत्तिः क्षपकोऽ यतात् । क्षायिकसमकितीने अयत-अविरतगुणस्थानथी मांडी अनिवृत्ति-बादर गुणस्थानना प्रथम भाग सुधी दर्शनत्रिकसम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीय, अनंतानुबंधिकषाय ४, अने अनर-मनुष्य सिवाय त्रण आयुष्य ए १० रहित १३८ नी सत्ता होय । १२९. अस्थावरतिर्यग्नरकातपद्विकस्त्यानगृद्धित्रिकैकविकला क्षसाधारणद्वितीयोऽप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणतृतीयः
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy