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________________ ૧૭ ६१. स्त्रीनरपश्चाक्षे चत्वारोऽन्त्याः । स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी अने पंचेंद्रिय ए त्रणने विषे छेल्ला असंज्ञी पंचेंद्रिय अने संज्ञी पंचेंद्रिय ए बे अपर्याप्ता अने पर्याप्ता एम चार जीवस्थान होय । ६३. अनाहारेऽपर्याप्तषट्कं ससद्वयम् । अनाहारीने विषे बे संज्ञीसहित छ अपर्याप्ता एटले संज्ञी अपर्याप्तो अने पर्याप्तो, सूक्ष्म एकेंद्रिय, बादर एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने असंशी पंचेंद्रिय ए छ अपर्याप्ता एम आठ जीवस्थान होय । ६३. असूक्ष्मापर्याप्तं सास्वादने । सास्वादन समकितीमां सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ता विना पूर्वोक्त सात भेद होय । हवे मार्गणास्थानोमां गुणस्थान कहे छे६४. तिरश्चि सुरनारके नरसज्ञिपञ्चेन्द्रियभव्यत्रसे एकविकलभूदकवृक्षे तेजोवाय्वभव्ये वेदत्रिकषाये लोभेsयतेऽज्ञानत्रिके चक्षुरचक्षुषोर्यथाख्याते मनोज्ञाने सामायिकच्छेदे परिहारे केवलद्विके मतिश्रुतावधिद्विक औपशमिके वेदके क्षायिके मिथ्यात्वत्रिके देशसूक्ष्मसम्पराये योगाहारशुक्ललेश्यास्वसञ्ज्ञित्रिद्विलेश्यानाहारे
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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