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________________ प्रकाशकीय - निवेदन आ 'आवश्यक सप्ततिः' अपर नाम 'पाक्षिक-सप्ततिः' नामना प्रन्थ ने आगमोद्धारक - ग्रंथमाला ना ४९ मा रत्न तरीके प्रगट करता अमने बहु हर्ष थाय छे । आना प्रकाशनमां सुरत जैनानन्द पुस्तकालय तथा छाणी प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी शास्त्र संग्रह नी सोमचंदभाई द्वारा प्राप्त थयेल हस्तलिखित प्रत नो उपयोग कर्यो छे । आनी प्रेसकोपी तथा संशोधन पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्य सागरसूरीश्वरजी म० नी पवित्र दृष्टि नीचे शताधानी मुनिराज श्री लाभसागरजी गणिए करेल छे. ते बदल तेश्रो श्रीनो तेमज जेओए आना प्रकाशन मां द्रव्य तथा प्रति आपवानी सहाय करी छे ते बघा महानुभावो नो आभार मानीए छोए. लि. -प्रकाशक
SR No.022251
Book TitleAavashyak Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Maheshwarcharya, Labhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1972
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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