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________________ 88 : विवेकविलास दया, दान, इन्द्रियदमन, देव पूजा, गुरु भक्ति, क्षमा, सत्य, पवित्रता, तपस्या और चोरी न करना- ये दस प्रकार के गृहस्थों के धर्म कहे गए हैं। अनन्यजन्यं सौजन्यं निर्माया मधुरा गिरः। सारः परोपकारश्च क्रमो धर्मविदामयम्॥6॥ अपने हृदय में सर्वोत्तम सज्जनता धारण करना, कपट रहित मीठे वचन कहना, और सारभूत परोपकार करना- यही धर्म के जानने वाले पुरुषों की रीति कही है। पापनाशोपायमाह - दीनोद्धरणमद्रोहो विनयेन्द्रियसंयमौ। न्याय्या वृत्तिर्मुदुत्वं च धर्मोऽयं पीप्मनीच्छेद॥7॥ . इसी प्रकार असहाय-दीनजनों का उद्धार करना, किसी के साथ मत्सराचरण न करना, विनय रखना, इन्द्रियों को वश रखना, न्याय के मार्ग से चलना और कोमलता रखना- इस धर्म से पापका नाश होता है। कृत्वा माध्याह्निकी पूजां निवेश्यानादि भाजने। नरः स्वगुरुदेवेभ्योऽन्यदेवेभ्यश्च ढौकयेत्॥8॥ व्यक्ति को मध्याह्न काल की पूजा करके किसी पात्र में अन्नादि रखकर घर में और गुरु, मन्दिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा के सम्मुख नैवेद्य निवेदित करना, नमन करना चाहिए। तथा चातिथि सत्कारं अनाहूतमविज्ञातं । दानकालसमागतम्। जानीयादतिथिं प्राज्ञ एतस्माद्वयत्यये परम्॥9॥ बिना निमन्त्रित किए ही दान-अवसर पर जो अनजान व्यक्ति आकर खड़े हो जाएं, सुज्ञ पुरुष को उनको अतिथि जानना चाहिए और यदि परिचित हो तो पाहुना, ; मेहमान होंगे। अतिथीनर्थिनो दुःस्थान् भक्तिशक्त्यनुकम्पैनः । कृत्वा कृतार्थानौचित्याद्भोक्तुं युक्तं महात्मनाम्॥10॥ महात्मा पुरुषों को व अतिथियों को भक्तिपूर्वक, याचक को शक्त्यानुसार । और असहाय को दया से देश-काल के अनुसार दान देकर फिर स्वयं भोजन करना चाहिए। ---------------. * मनु ने दशलक्षणात्मक धर्म इस प्रकार बताया है- धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । 'धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥ (मनुस्मृति 6, 92)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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