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________________ 74 : विवेकविलास . व्ययविचारं - आरम्भोऽयं महानेव लक्ष्मीकामणकर्मणि। सुतीर्थविनियोगेन विना पापाय केवलम्॥47॥ द्रव्योपार्जन करने के लिए बहुत उद्योग करना पड़ता है। अतएव उपार्जित द्रव्य का सुपात्रता से व्यय न किया जाए तो उसमें केवल पाप का ही बन्धन होता है। लक्ष्मीवृद्ध्यार्थ जीवदयाकर्तव्यं पाशुपाल्यं श्रियो वृद्धयै कुर्वन्नोझोहयालुताम्। तत्कृत्येषु स्वयं जाग्रच्छविच्छेदादि वर्जयेत्॥48॥ यदि लक्ष्मी की वृद्धि के हेतु गाय-भैंस आदि प्रमुख पशुओं का रक्षण करना पड़े तो भी दया नहीं छोड़नी चाहिए अपितु उस कार्य में स्वयं जागृत रहना चाहिए और पशुओं के अङ्गचिह्नादि का कभी छेदन नहीं करना चाहिए। अन्न सङ्ग्रहनिर्देशं - श्रेयो धर्मात्स चार्थेषु सोऽप्यनेन तदन्नतः। तन्निष्पतौ च सङ्ग्राह्यं कथं दद्यादसङ्ग्रही॥49॥ धर्म से कल्याण होता है, द्रव्य से धर्म होता है, शरीर से द्रव्योपार्जन होता है और यह शरीर अन्न से जीवित रहता है। इसलिए अन्न उत्पन्न होते ही उसका संग्रह करना चाहिए। संग्रह नहीं किया हो तो दिया कैसे जाएगा। सङ्ग्रहेऽर्थोऽपि जायेत प्रस्तावे तस्य विक्रयात्। उद्धारे नोचितः सोऽपि वैरविग्रहकारणम्॥50॥ यदि अन्न का संग्रह किया गया हो तो समय पर बिक्री करने से लाभ भी होता है परन्तु वह उधार नहीं बेचना चाहिए। यदि उधार दिया गया तो वैर और कलह का कारण बनता है। भाण्डेषुहस्तादि संज्ञाज्ञाननिर्देशं - सर्वदा सर्वभाण्डेषु नाणकेषु च शिक्षितः। जानीयात्सर्वभाषाविद्धस्तसञ्ज्ञां वणिग्वरः ॥ 51॥ सर्वदा सभी प्रकार के पात्रों के माप-तौल, पदार्थ, रुपया-मुद्रा का तौलमौल और उनसे सम्बन्धित भाषाओं, हस्त (मीटर) आदि की संज्ञाओं का व्यवहारिक ज्ञान होना चाहिए।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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