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________________ 72 : विवेकविलास दामोदर के समान कभी लक्ष्मी नहीं छोड़ती है। स्वापान्ते वमने स्नाने भोजनान्ते सदस्यपि। तत्त ग्राह्यमनल्पीयः सुखदं मुखशुद्धिकृत्॥38॥ सुख प्रदायक और मुंह को शुद्ध करने वाला ताम्बूल निद्रा, वमन, स्नान और भोजनोपरान्त तथा सभा-गोष्ठी" हो तो सेवन करना चाहिए। पानसंरचनाह - पर्णमूले वसेद्वयाधिः पर्णाग्रे पापसम्भवः। चूर्णपत्रं हरेदायु शिरा बुद्धिविनाशिनी॥39॥ यह ज्ञातव्य है कि पान के मूल में व्याधि रहती है; अग्रभाग में पाप का समूह रहता है। सूखा हुआ चूर्ण सम पान खाने से आयुष्य का विनाश होता है और पान की नस बुद्धि का नाश करती है। अथ द्रव्योपार्जनाधिकारः सुधीरर्थार्जने यत्नं कुर्यात्र्यायपरायणः। न्याय एवानपायो यदुपायः सर्वसम्पदाम्॥40॥ समझदार व्यक्ति को सदैव न्याय मार्ग का आश्रय करके ही द्रव्योपार्जन करना चाहिए। न्याय ही द्रव्योपार्जन का शुद्ध उपाय है। दत्तः स्वल्पोऽपि भद्राय स्यादर्थो न्यायसञ्चितः। अन्यायात्तः पुनर्दत्तः पुष्कलोऽपि फलोज्झितः॥41॥ न्यायपूर्वक कमाया गया द्रव्य यदि (धर्मादि कृत्यों में) अल्प व्यय भी करें तो कल्याण का हेतु होता है और अन्यायोपार्जित अधिक व्यय हो तब भी निष्फल जानना चाहिए। धर्ममर्माविरोधेन सकलोऽपि कुलोचितः। निस्तन्द्रेण विधेयोऽत्र व्यवसायः सुमेधसा॥42॥ बुद्धिमानों को चाहिए कि व्यापार में ऐसी विधि ही अपनानी चाहिए कि जिसमें कभी धर्मतत्त्व का विरोध नहीं हो-ऐसे में आलस्य का त्यागकर उद्यम करना चाहिए। अथ दृष्टान्तं* यहाँ वराहमिहिर का मत तुलनीय है-कामं प्रदीपयति रूपमभिव्यक्ति सौभाग्यमावहति वक्त्रसुगन्धितां च। ऊर्ज करोति कफजांश्च निहन्ति रोगांस्ताम्बूलमेवमपरांश्च गुणान् करोति ॥ (बृहत्संहिता 77, 35) **शार्ङ्गधरपद्धति, मानसोल्लास में ताम्बूल-गोष्ठी का वर्णन आया है। ॐ विष्णुधर्मोत्तर में यह श्लोक इस रूप में है—पर्णमूले भवेत् व्याधिः पर्णाग्रे पापसम्भवः । चूर्णपर्ण हरत्यायुः शिरा बुद्धिविनाशिनी ॥ (लक्षणप्रकाश में उद्धृत पृष्ठ 220)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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