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________________ अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लासः : 55 प्रश्न में यदि 'ए' आए तो पश्चिम दिशा में भूमि के अन्दर डेढ़ हाथ नीचे बालक का शल्य होता है, ऐसा जानना चाहिए, इससे गृहस्वामी अपना क्षेत्र त्यागकर विदेश चला जाता है। वायव्यां दिशि हः प्रश्ने नराङ्गाराश्चतुः करे। कुर्वन्ति मित्रनाशं ते दुःस्वपस्य प्रदर्शनात्॥ 168॥ प्रश्न में 'ह' आए तो वायव्य दिशा में भूमि के अन्दर चार हाथ नीचे मनुष्य के श्मशान के अङ्गारे दबे होंगे, ऐसा जाने। इससे मैत्री पर सङ्कट जानना चाहिए और . बुरे सपने आते हैं। उदीच्यां दिशि सः प्रश्ने विप्रशल्यं कटेरधः । तच्छीघ्रं निर्धनत्वाय प्रायो धनवतोऽप्यदः॥169॥ यदि प्रश्न करते समय 'स' अक्षर आए तो उत्तर दिशा में भूमि में कटिपर्यन्त विप्र का शल्य होता है, ऐसा जानना चाहिए। इससे धनाढ्य गृहस्वामी भी प्रायः निर्धन हो जाता है। ऐशान्यां दिशि पः प्रश्ने गोशल्यं सार्धहस्ततः। तद्गोधनस्य नाशाय जायते गृहमेधिनाम्॥ 170॥ इसी प्रकार से यदि प्रश्न में 'प' अक्षर पहले आए तो ईशान कोण में भूमि के अन्दर डेढ़ हाथ नीचे गोशल्य इत्यादि होगा। इससे वहाँ बन्धने वाले चौपाये, गृहस्वामी के गोधन का नाश होता है। मध्यकोष्ठे च यः प्रश्ने वक्षोमात्रे तदाह्यधः। केशाः कपालं मर्त्यस्य भस्मलोहे च मृत्यवे॥171॥ ___ इति शल्यविचारं। इसके अनन्तर मध्य के कोष्ठक में जो 'य' अक्षर है यदि उसका अक्षर आए तो भूमि के मध्य भाग में वक्ष के बराबर गहराई पर मनुष्य के केश, कपाल, भस्म और लोहे का टुकड़ा आदि दबा है- ऐसा जाने। इसका फल मृत्युकारक होता है। (ऐसे में भूमि को शल्य विहीन कर ही निर्माणार्थ ग्रहण किया जाना चाहिए)।* * उक्त श्लोक (163-171) चन्द्राङ्गज फेरू के मत से तुलनीय है- व प्यन्हे नरसल्लं सड्ढकरे मिच्चुकारगं पुवे।क प्पन्हे खरसलं अम्गि दुहत्थेहि निवदण्डं ॥ दाहिण च प्यण्हेणं नरसल्लं कडितलंमि मिच्चुकरं। त प्पन्हिसाण नेरइ डिंभाण य मिच्चु सड्ढकरे॥ ए पन्हे अवरदिसे सिसुसल्लं सडहत्थि परदेसं। वायवि ह पन्हि चउकरि अंगारा मित्तनासयरा ॥ स प्पन्हि उत्तरेण य दय वरसल्लं कडीइ रोरकरं। प प्यण्हे गोसल्लं सडकरीसाणि धणनासं ॥ य प्पन्हि मज्झकुटे केसं छारं कवाल अइसल्ला । वच्छत्थलप्पमाणा मिच्चुकरा होंति नायप्पा । इय एवमाइ अनिवि जे पुव्वगयाइ होंति सलाई। (वत्थुसारपयरणं 1, 13-18) यही मत बृहत्संहिता के वास्तुविद्याध्याय 60-62 में आया है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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