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________________ 50 : विवेकविलास यदि किसी कारण से धातु निर्मित, लेपित की हुई अथवा दूसरी ऐसी ही कोई प्रतिमा खण्डित हो जाए तो उसका पुनर्संस्कार हो सकता है किन्तु काष्ठअथवा पाषाण की प्रतिमा खण्डित हो तो उसका पुनर्संस्कार नहीं होता है। अशुभप्रतिमालक्षणं नखाङ्गलीबाहूनासाङ्ग्रीणां भङ्गेष्वनुक्रमात्।। शत्रुभिर्देशभङ्गश्च बन्धः कुलधनक्षयः॥ 142॥ — यदि किसी प्रतिमा के नख खण्डित हो जाए तो शत्रु से भय होता है। अङ्गली खण्डित हो तो देश भङ्ग, बाहु खण्डित हो तो बन्धन, नासिका खण्डित हो तो कुल का क्षय और पाँव खण्डित हो तो धन-हानि होती है। पीठयानादीनां खण्डितप्रतिमादोषः पीठ-यान-परीवार-ध्वड्से सति यथाक्रमम्। स्थानवाहनभृत्यानां नाशो भवति निश्चितम्॥ 143॥ प्रतिमा की पीठ या सिंहासन खण्डित हो तो स्थान का नाश होता है। वाहन खण्डित हो तो यान-वाहन का विनाश और प्रतिमा का परिवार खण्डित हो तो भृत्यसेवकों का विनाश होता है। आरभ्यैकाङ्गलादूर्ध्वं पर्यन्तैकादशाङ्गलम्। गृहेषु प्रतिमा पूज्या तस्योपरि सुरालये॥ 144॥ एक अङ्गुल से लेकर ग्यारह अङ्गुल तक ऊंची प्रतिमा घर में पूजनी चाहिए किन्तु इससे ज्यादा ऊँची हो तो मन्दिर में रखकर ही पूजनी चाहिए। प्रतिमा काष्ठ-लेपाश्म दन्तचित्रायसां गृहे। मानाधिका परीवार रहिता नैव पूज्यते॥ 145॥ काष्ट की, लेप की हुई पाषाण की, दाँत की बनाई, चित्रित अथवा लौहादि धातु की प्रतिमा यदि शास्त्रोक्त मान से अधिक हो और अपने परिवार से रहित हो तो घर में नहीं पूजना चाहिए।** अन्य दोषादीनां - --- ------- * प्रकाशित पाठ में यह श्लोक नहीं है। उक्त मत वत्थुसारपयरणं में भी आया है- इक्कांगुलाइ पडिमा इक्कारस जाव गेहि पूइज्जा। उ९ पासाइ पुणो इअ भणियं पुव्वसूरीहिं ।। (वत्थुसारपयरणं 2, 43) देवतामूर्तिप्रकरणं में कहा गया है- आरभ्यैकाङ्गलादूवं पर्यन्तद्वादशाङ्गलम् । गृहेषु प्रतिमा पूज्या नाधिका शस्यते ततः ॥ तदूर्वानवहस्तान्ता पूजनीया सुरालये। दशहस्तादितो यार्चा प्रासादेन विना~येत्।। (1, 20-21) * *तुलनीय देवतामूर्तिप्रकरणं ( 1, 37)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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