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________________ अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास: : 37 उक्तं च - सुगन्धवदनाः स्निग्धनिस्वना विमलेन्द्रियाः। निर्वलीपलितव्यङ्गा जायन्ते नस्यशीलिनः॥73॥ ऐसी वैद्यक शास्त्रों की उक्ति है कि जो पुरुष नस्य-द्रव्य का प्रयोग करते हैं, उनके मुख में सुगन्ध का वास होता है, स्वर मृदु होते हैं, इन्द्रियाँ निर्मल रहती हैं और शरीर पर दाग-चाट आदि नहीं पड़ते हैं। स्नेहनगण्डूषविधिं आस्यशोषाधरस्फोट स्वरभङ्गनिवृत्तये। पारुष्यदन्तरुक्छित्त्यै स्नेहगण्डूषमुद्वहेत्॥74॥ यदि मुख सूखता जाता हो, ओठ फट गए हों, स्वर बैठ गए हों, चमड़ी चीठ हो गई हो, दन्तपीड़ा होती हो, तो उसे मिटाने के लिए सम्बद्ध रोगी को घृत अथवा तेल के कुल्ले करने चाहिए, इससे लाभ मिलता है। केशप्रसाधनविधि केशप्रसादनं नित्यं कारयेदथ निश्चलः। कराभ्यां युगपत्कुर्यात्स्वोत्तमाङ्गे स्वयं न तत्॥75॥ केश प्रसाधन में यह ज्ञात रहे कि पीछे स्थिर बैठ कर किसी दूसरे से अपने शिर के बाल साफ कराने चाहिए। अपने ही सिर के केश अपने हाथ से साफ करने हो तो दोनों हाथ से एक साथ साफ नहीं करने चाहिए। तिलकं द्रष्टुमादर्श मङ्गलाय च वीक्ष्यते। दृष्टे देहे शिरोहीने मृत्युः पञ्चदशेऽहनि॥76॥ अब मुकुर में स्वदर्शन के सम्बन्ध में कहा जा रहा है कि अपना तिलक देखने के लिए या माङ्गलिक के हेतु काँच में देखना चाहिए। इस दौरान यदि सिर विहीन केवल अपना धड़ ही दिखाई दे तो उस दिन से पन्द्रहवें दिन अपनी मृत्यु जाने। मातृपितृनमस्कारफलं मातृप्रभृतिवृद्धानां नमस्कारं करोति यः।। तीर्थयात्राफलं तस्य तत्कार्योऽसौ दिने दिने॥77॥ जो अपने माता-पिता आदि वृद्धजनों को प्रणाम करता है, उसे तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होता है। इसलिए उनको सदैव ही नमस्कार करना चाहिए। ---- ---------------------- * मनु ने कहा है कि नित्यवृद्धजनों को प्रणाम करने से तथा उनकी सेवा करने से मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल की अभिवृद्धि होती है- अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्॥ (मनु. 2, 121)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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