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________________ 34 : विवेकविलास गजाद्यैर्वाहनैर्यस्तु व्यायामो दिवसोदये। अमृतोपम एवासौ भवेयुस्ते च शिक्षिताः॥ दिन के उदयकाल में गजसवारी और अश्वसवारी करना उचित है, इसी दौरान व्यायाम करना अमृत के समान प्रशस्त है क्योंकि इससे गज-अश्वादि को भी सञ्चरण की उचित शिक्षा प्राप्त होती है। अथ दन्तधावनं दन्तदााय तर्जन्या घर्षयेहन्तपीठिकाम्। आदावतः परं कुर्याद्दन्तधावनमादरात्॥60॥ व्यक्ति को अपने दाँत सुदृढ़ करने के लिए पहले तर्जनी अङ्गुली से दाँत की पढ़ियाँ घिसनी चाहिए। इसके बाद, सम्भल कर दाँत घिसे। यद्याद्यवारिगण्डूषाद्विन्दुरेकः प्रधावति। कण्ठे तदा नरैज्ञेयं शीघ्रं भोजनमुत्तमम्॥61॥ जब दन्तधावन किया जा रहा हो तब कुल्ले एक बिन्दु भी कण्ठ में उतर जाए तो व्यक्ति को यह जानना चाहिए कि आज अतिशीघ्र और उत्तम भोजन मिलेगा। दन्तधावनकाष्ठलक्षणः अवकाग्रन्थिसत्कूर्च सूक्ष्माग्रं द्वादशाङ्गुलम्। कनिष्ठाग्रसमस्थौल्यं ज्ञातवृक्षं सुभूमिजन्॥62॥ दाँतों की सफाई के लिए काष्ठ कैसा हो, इसके लिए कहा जा रहा है कि सीधा, बिना गाँठ वाला, जिसका गुच्छा अच्छा बन्ध जाए, अग्र भाग कोमल हो ऐसा काष्ठ लेना चाहिए। वह बारह अङ्गुल लम्बा और तर्जनी के आकार जैसा मोटा हो। अपनी परिचित, उत्तम भूमि में उत्पन्न हुए वृक्ष का दन्तकाष्ठ (दातुन) लेना चाहिए। कनिष्ठिकानमिकयोरन्तरं दन्तधावनम्। आदाय दक्षिणां दष्ट्रां वामां वा संस्पृशस्तले॥ 63॥ तल्लीनमानसः स्वस्थो दन्तमांसमपीडयन्। सर्वप्रथम दातुन को तर्जनी और उसके पास की अङ्गुली के बीच में पकड़ स्मृतियों में कहा गया है- सर्वे कण्टकिनः पुण्याः क्षीरिणश्च यशस्विनः । दूध वाले और कांटे वाले वृक्ष दातुन के लिए पवित्र माने गए हैं। (लघुहारीतस्मृति 4, 9) उत्तम वृक्षों के लिए कहा है- खदिरश्च करञ्जश्च कदम्बश्च वटस्तथा। वेणुश्च तिन्तिडीप्लक्षा वाम्रनिम्बे तथैव च। अपामार्गश्च बिल्वश्च अर्कश्चौदुम्बरस्तथा। एते प्रशस्ताः कथिता दन्तधावनकर्मणि ।। (विश्वामित्रस्मृति 1, 61-62) दाँतुन के प्रमाण के लिए कहा है- कनिष्ठाग्रपरीमाणं सत्वचं निर्वणारुजम्। द्वादशाङ्गलमानं च सार्दै स्याद्दन्त धावनम् ॥ (स्कन्द. ब्रह्म. धर्मारण्य. 5, 59 एवं तुलनीय-वसिष्ठस्मृति 2, 6, 18)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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