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________________ अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लासः : 31 कोई दाद-खाज, एग्जिमा हो तो उस पर बासी मुँह के थूक को रगड़ना चाहिए और शरीर के वज्रीकरण के लिए दोनों हाथों से मसाज करनी चाहिए। वज्रनामकमाकण्ठं पातव्यमथवा पयः। अम्भसः प्रसृतीरष्टौ पेयाः केचिद्वदन्त्यपि॥45॥ प्रात:काल जलपान बहुत लाभदायक होता है। इस कारण जल को वज्र कहा जाता है। अतः 'वज्र' संज्ञक पानी को आकण्ठ या भरपेट पीना चाहिए। कई विद्वानों ने तो आठ पसली पानी पीने को कहा है। न स्वप्यान्नान्यमायासं कुर्यात्पीत्वा जलं सुधीः। आसीनो हृदि शास्त्रार्थान् दिनकृत्यानि च स्मरेत्॥46॥ कभी जलपान करके पुनः नहीं सोना चाहिए और थकावट करने वाला काम भी नहीं करना चाहिए किन्तु, हृदय में स्थित होकर शास्त्रों में वर्णित मतों पर विचार करना चाहिए अथवा उस दिन जो भी शुभकृत्य निश्चित किया गया हो, उसका चिन्तन करना चाहिए। प्रभाते करदर्शनं प्रातः प्रथममेवाथ स्वपाणिं दक्षिणं पुमान्। पश्येद्वामं च वामाक्षी निजपुण्यप्रकाशकम्॥47॥ सुबह उठते ही करदर्शन करना चाहिए। पुरुष को चाहिए कि वह अपने पुण्य को प्रकाशित करने वाले दाहिने हाथ को देखे और स्त्री को बायाँ हाथ देखना चाहिए। शौचाशौचमाह - मौनी वस्त्रावृतः कुर्याद्दिने सन्ध्याद्वयेऽपि च। उदङ्मुखः शकृन्मूत्रे रात्रौ याम्याननः पुनः॥48॥ इसके बाद उचित वस्त्रादि धारण कर, दिन को अथवा प्रभात या सन्ध्या हो तो उत्तर दिशा में और रात्रि हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह रखकर मौनावस्था में मल-मूत्र का विसर्जन करना चाहिए।" * अष्टाङ्गसंग्रह सूत्रस्थान में कहा गया है कि जल का उचित रूप से ही प्रयोग किया जाना चाहिए केवलं सौषधं पक्वमाममुष्णं हितं च तत्। समीक्ष्य मात्रया युक्तममृतं विषमन्यथा । अतियोगेन सलिलं तृष्यतोऽपि प्रयोजितम्। प्रयाति पित्तश्रूष्मत्वं ज्वरितस्य विशेषतः ॥ वर्धयत्यामतृनिद्रा तन्द्राऽऽध्मानाङ्गगौरवम्। कासाग्निसादहल्लास प्रसेकश्वासपीनसान्।। (अष्टाङ्गसंग्रह. 6, 32-34) **महाभारत में कहा है कि दिन में उत्तर व रात में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए, इससे आयु क्षीण नहीं होती है- उभे मूत्रपुरीषे तु दिवा कुर्यादुदङ्मुखः । दक्षिणाभिमुखो रात्रौ तथा ह्यायुर्न रिष्यते ।। (अनुशासन पर्व 104, 76 तुलनीय मनुस्मृति 4, 50)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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