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________________ अथ प्रशस्तिः आस्ति प्रीतिपदं गच्छो जगतः सहकारवत् । जनपुंस्कोकिलाकीर्णा वायडस्थानकस्थितिः ॥ 1 ॥ आमवृक्ष के तुल्य इस जगत् में प्रीति प्रदायक और श्रेष्ठ पुरुष कोकिल पक्षी से व्याप्त ऐसा 'वायड' नामक गच्छ है । अर्हन्मतपुरीवप्रस्तत्र श्रीराशिलः प्रभुः । अनुल्लथ्यः परैर्वादिवीरैः स्थैर्यगुणैकभूः ॥ 2 ॥ उस वायड गच्छ में, अर्हत्मतरूप नगरी की सुरक्षा के प्रयोजन एक वप्र (परकोटा) तुल्य, वादीरूप शूरवीरों से अपराङ्गमुख रहने वाले और स्थिरतादि सद्गुणों के आश्रयस्थल, ऐसे राशिल प्रभु हुए। गुणाः श्रीजीवदेवस्य प्रभोरद्भुतकेलयः । विद्वज्जनशिरोदोलां यन्नोज्झन्ति कदाचन ॥ 3 ॥ श्रीजीवदेव गुरुवर के गुणों की लीला कुछ अद्भुत ही है क्योंकि वे (गुण) विद्वज्जनों के सिर-स्वरूप हिन्दोल को कभी नहीं छोड़ते अर्थात् विद्वज्जन जिनकी सिर धुनकर सर्वदा प्रशंसा करते नहीं थकते हैं । अस्ति तच्चरणोपास्ति सञ्जातस्वस्तिविस्तरः । सूरि : श्रीजिनदत्ताख्यः ख्यातः सूरिषु भूरिषु ॥ 4 ॥ (ऐसे विशेषणजयी) जीवदेव गुरुमहाराज के चरण सेवन से कल्याण की परम्परा प्राप्त श्रीजिनदत्तसूरि नामक आचार्य सब आचार्यों में प्रसिद्ध है । चाहुमान्वयपोथोधि संवधर्नविधौ विधुः । श्रीमानुदयसिंहोऽस्ति श्रीजाबालिपुराधिपः ॥ 5 ॥ चाहुमान (चौहान) वंशरूप सागर को उल्लास देने के निमित्त चन्द्रमा के समान उदयसिंह नामक जाबालिपुर (जालोर, राजस्थान) का राजा है। तस्य विश्वाससदनं कोशरक्षाविचक्षणः । देवपालो माहामात्यः प्रज्ञानन्दनचन्दनः ॥ 6 ॥ उक्त उदयसिंह भूपति का बहुत विश्वासपात्र और उसके भण्डार की रक्षा करने में निपुण ‘देवपाल' नामक महामात्य है, जो बुद्धिरूप नन्दनवन में चन्दन जैसा अर्थात् बड़ा बुद्धिशाली है ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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