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________________ 26 : विवेकविलास कि रात्रि के प्रथम पहर में देखा हुआ स्वप्न अगले एक वर्ष में, दूसरे पहर में देखा हुआ छह मास में, तीसरे पहर में देखा हुआ तीन माह में एवं चौथे पहर में देखा हुआ स्वप्न अविलम्ब फल देने वाला होता है। मालास्वप्नोऽह्नि दृष्टश्च तथाधिव्याधिसम्भवः। मलमूत्रादिपीडोत्थः स्वप्रः सर्वो निरर्थकः॥21॥ एक स्वप्न के उपरान्त दूसरा स्वप्न-इस क्रम से देखे हुए अनेक स्वप्न, दिन में दृष्ट हुआ, मनकी चिन्ता अथवा शरीर की व्याधि से उत्पन्न और मल-मूत्र का वेग रोकने से उत्पन्न पीड़ा के कारण देखा गया स्वप्र- ये समस्त स्वप्र निरर्थक हैं। अशुभः प्राक् शुभः पश्चात् शुभो वा प्रागथाशुभः। पाश्चात्यः फलदः सर्वो दुःस्वप्ने शान्तिरिष्यते॥22॥ पूर्व में अशुभ और पश्चात् शुभ अथवा पहले शुभ एवं बाद में अशुभ स्वप्न दिखाई दे तो पीछे वाले स्वप्न को ही शुभ या अशुभ फल देने वाला समझना चाहिए। कदाचित् दुस्स्वप्न हो तो जप, पूजादि शान्ति के उपाय करने चाहिए।" स्वरोदयविचारमाह - प्रविशत्पवनापूर्ण नासिकापक्षमाश्रितम्। पादं शय्यास्थितो दद्यात् प्रथमं पृथिवीतले॥23॥ नासिका के दाहिने अथवा बायें जिस छिद्र से पवन प्रवेश करता हो, उसी भाग का पैर उठाकर शय्या छोड़ते समय पहले पृथ्वी पर रखना चाहिए। अम्भोभूतत्त्वयोनिद्रा विच्छेदः शुभहेतवे। व्योमवाय्वग्नितत्वेषु स पुनर्दुःखदायकः॥24॥ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश-ये पाँच आधारभूत तत्त्व श्वासोच्छ्वास के दौरान आते-जाते रहते हैं। इनका ध्यान लगाकर जब पृथ्वी या आपतत्त्व श्वासोच्छास --------- ---------- केशवदैवज्ञ का मत है कि जो स्वप्न रात्रि के प्रथम पहर में दिखाई देते हैं, वे एक वर्ष में; दूसरे प्रहर में दिखाई देने वाले स्वप्न छह मास; तीसरे प्रहर में दिखने वाले स्वप्न तीन मास और चतुर्थ प्रहर के स्वप्न आगामी एक मास में अपना फल प्रदान करते हैं। तड़के या प्रभातवेला में आए स्वप्न का फल आसन्न होता है (दिवास्वप्र वृथा कहे गए हैं)। स्वप्न पर विचार कर पुनः सो जाने से फल गौण हो जाता है। यदि शुभ स्वप्न हो तो अपने से बड़ों को दिन में बताना चाहिए, रात्रि में नहीं। इसी प्रकार अशुभ स्वप्न का कथन नहीं करें-अब्दा र्धा झ्ये कमासैः फलतिधरणैर्निप्रश्युषस्यैवसद्य: स्वप्रानिद्रा फलध्याहिगुरुषु कथयेत्स्वत्वसनैव वाच्यम्। (मुहूर्ततत्त्वं 17, 3) ** अद्भुतसागर में ऐसी शान्तियाँ दी गई हैं। केशवदैवज्ञ का मत है कि यदि बुरा स्वप्न हुआ तो फल के निवारण के उद्देश्य से अश्वत्थ का पूजन करें। गाय की सेवा करें। देवताओं का यजन करें और 'यजाग्रतो.' इत्यादि छह ऋचाओं का पाठ करें। देवी पाठ भी किया जाना चाहिए-दुःस्वप्रेश्वत्थ गोभक्तिसुरयजन यज्जाग्रदेवीजपैः सत्।। (मुहूर्ततत्त्वं 17, 5)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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