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________________ 236 : विवेकविलास क्षेमार्थी वृक्षमूलं न निशीथिन्यां समाश्रयेत् । नासमाप्ते नरो दूरं गच्छेदुत्सवसूतके ॥ 363 ॥ कल्याणार्थी पुरुष को निशाकाल में वृक्ष के नीचे नहीं रहना चाहिए और उत्सव तथा सूतक पूरा हुए बिना दूरी की यात्रा नहीं करना चाहिए । अन्यदप्याह - क्षीरं भुक्त्वा रतं कृत्वा स्नात्वा हत्त्वा गृहाङ्गनाम् । वान्त्वा निष्ठीव्य चाक्रोशं श्रुत्वा च प्रचलन्नहि ॥ 364 ॥ विवेकवान् को दूध का प्रयोग करने के बाद, सहवास के बाद, अपनी भार्या को प्रताड़ित कर, वमन और किसी का रुदन सुनकर तत्काल प्रयाण नहीं करना चाहिए । कारयित्वा नरः क्षौरंमश्रुमोक्षं विधाय च । गच्छेद् ग्रामान्तरं नैव शकुनापाटवे न च ॥ 365 ॥ विवेकी पुरुष का क्षौर करवाते ही अश्रुपातकर और अपशकुन देखकर परग्राम नहीं जाना चाहिए । नद्याः परतटाद्गोष्ठात्क्षीरद्रोः सलिलाशयत् । निवर्तेतात्मनोऽभीष्टा ननुव्रज्य प्रवासिनः ॥ 366 ॥ ज्ञानी को चाहिए कि जब अपने सम्बन्धी परग्राम जाते हों तो उन्हें (तत्कालीन परम्परानुसार) नदी पार तक, गोठां तक, ग्राम सीमा, बरगद आदि दूध वाले वृक्ष तक अथवा जलाशय तक पहुँचाकर पीछे आना चाहिए । अन्यदप्याह * नासहायो नचाज्ञातै नैव दासैः समं तथा । नातिमध्यंदिने नार्ध रात्रे मार्गे बुधो व्रजेत ॥ 367 ॥ समझदार को सदैव किसी को साथ लिए बिना, अनजान मनुष्य के साथ अथवा दास के साथ बिल्कुल मध्याह्न में अथवा रात को कहीं आना-जाना नहीं चाहिए । वराहमिहिर का मत है कि यात्रा में कपास, औषध, काला अन्न, नमक, नपुंसक व्यक्ति, अस्थियाँ, ताल - हरताल, अग्नि, साँप, कोयला, विष, कञ्चुली, मल, छुरा, रोगी, वमन करने वाला, पागल, पक्षाघात पीड़ित, अन्धा, तृण, तुस-भूसी, क्षुधापीड़ित, तक्र, शत्रु, मुण्डित सिर, तेल लगाया व्यक्ति, खुले केशवाला, पापी, लाल कपड़े पहने व्यक्ति इत्यादि अशुभ शकुन होते हैं — कार्पासौषधकृष्णधान्यलवणक्लीबास्थितानलं सर्पाङ्गारगराहिचर्मशकृतः केशारिसव्याधिताः । वातोन्मत्तजडान्धकतृणतुष क्षुत्क्षामतक्रारयो मुण्डाभ्यक्तविमुक्तकेशपतिताः काषायिणश्चाशुभाः ॥ (बृहद्योगयात्रा 27, 6; योगा 13, 14 एवं लघुटिक्कनिका 9, 15 )
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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