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________________ पश्येदपूर्वतीर्थानि देशान्वस्त्वन्तराणि च । लोकोत्तरान्नरांश्छायापुरुषं शकुनं तथा ।। 333 ॥ (अब देखने के योग्य-अयोग्य वस्तु के विषय में कहा जा रहा है) अपूर्व तीर्थ, नाना देश, नाना प्रकार की वस्तुएँ, अलौकिक पुरुष, छाया पुरुष और शकुन ये समस्त वस्तुएँ देखनी चाहिए । न पश्येत्सर्वदादित्यं ग्रहणं चार्कसोमयोः । अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास : : 231 नेक्षेताम्भो महाकूपे सन्ध्यायां गगनं तथा ॥ 334 ॥ कभी सूर्य की ओर नहीं देखना चाहिए। सूर्य व चन्द्र ग्रहण, बड़े कूप के अन्दर के जल और सन्ध्याकाल में आकाश दर्शन नहीं करना चाहिए । मैथुनं मृगयां नग्नां स्त्रियं प्रकटयौवनाम् । पशुक्रीडा च कन्यायां योनिं नालोकयेन्नरः ॥ 335 ॥ समझदार को स्त्री-पुरुष का सहवास, नग्नावस्था की तरुणी, कन्या का गुप्ताङ्ग और पशु क्रीड़ा को नहीं देखना चाहिए। न तैले न जले नास्त्रे न मूत्रे रुधिरे न च । * वीक्षेत वदनं विद्वानित्यमायुस्त्रुटिर्भवेत् ॥ 336 ॥ इसी प्रकार सुज्ञ पुरुष को अपने मुँह का प्रतिबिम्ब तेल में, जल में अस्त्र में, --- छायापुरुष दर्शन की विधि शिवस्वरोदय में आई है। इसी प्रकार रामचन्द्र सोमयाजी ने भविष्य सूचक छायापुरुष के प्रमाण लिखे हैं- प्रातः पृष्ठगते रवावनिमिषं छायां गले स्वां चिरं दृष्ट्वोर्ध्वं नयनेन यत्सिततरं छायानरं पश्यति। तत्कर्णासकरास्यपार्श्वहृदयाभावेक्षणेऽर्काश्वदिग्भूरामाक्षिसमाः शिरोविमगतो मासांस्तु षट् जीवति ॥ हृद्रंध्रंदृष्ट्या मुनि सङ्ख्यमासान् द्विदेहदृष्टौ तु मृतिस्तदैव। सम्पूर्णदृष्टौ तु न वर्ष मध्ये रोगो मृतिति वदन्ति सत्यम् ॥ स्त्रातस्य पूर्वं कर्णादेः शोषे प्रागुक्तवत्फलम् । सर्वाङ्गार्द्रस्य हृच्छोषे षण्मासाभ्यन्तरें मृतिः ॥ हस्ते न्यस्ते यदि न च्छिन्नदण्डोऽस्य दृष्टः षण्मासान्तर्न मरणभयं सम्पुटे हस्तयोस्तु । न्यस्ते शीर्ष यदि च कदलीकोरकाभं तदन्तर्दृष्टं नो भीस्तरति सलिले चेत्स्वशेफो नमृत्युः ॥ (समरसार 79-82) ** सामान्यतया जो-जो वस्तु मन के लिए प्रसन्नता की कारक है, उनको शकुन कहा गया है. यद् यद् वस्तुं स्वान्तनितान्तोपकरण मनः प्रसन्नकारकं, तत् तत् शुभशकुनं ज्ञेयम् । शकुन के विषय में वराहमिहिर का सिद्धान्त है कि अन्य जन्मान्तरों में किए गए शुभाशुभ कर्मों का फल ही लोगों की यात्रा अथवा आक्रमण के काल में शकुनों द्वारा सामने आता है- अन्यजन्मान्तरकृतं पुंसा कर्म शुभाशुभम् । यत्तस्य शकुनः पाकं निवेदयति गच्छताम् ॥ (बृहद्योगयात्रा 23, 1 तथा बृहत्संहिता 86, 5) श्रीपति के मतानुसार निम्नशकुन है – भृङ्गाराञ्जनवर्द्धमान मुकुराबद्धेकपश्वा मिषोष्णीष क्षीरनृयानपूर्णकलशच्छत्राणि सिद्धार्थकाः । वीणाकेतनमीनपङ्कज दधिक्षौद्राज्य गोरोचना: कन्याशङ्खसि - तोक्षवस्तुमनोविप्राश्वरत्नानि च ॥ प्रज्वलज्वलन-दन्ति तुरङ्गाभद्रपीड गणिकाङ्कुशमृत्स्नाः । अक्षतेक्षुफलचामरभक्षाण्यायुधानि च भवन्ति शुभानि ॥ भेरिमृदङ्ग मृदुर्मद्दल शङ्खवीणा वेदध्वनिर्मधुरमङ्गलगीतघोषाः । पुत्रान्विता च युवतीः सुरभिः सवत्सा धौताम्बरश्च रजकोऽभिमुखः प्रशस्त: ॥ ( ज्योतिषरत्नमाला 15, 62-64)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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