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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास : : 227 लगभग समान होने से बैल जैसा गवय कहा जाता है, यह उपमिति विचार है। आगमश्चाप्तवचनं स च कस्वापि कोऽपि च । वाच्याप्रतीतौ तत्सिद्धड्यै प्रोक्तार्थापत्तिरुत्तमैः ॥ 308 ॥ आप्त (राग-द्वेषादि रहितं) पुरुष का वचन 'आगम' (शब्द) कहा जाता है । आप्त पुरुष इन मतावलम्बियों के पृथक्-पृथक् हैं। शब्दार्थ की सम्यक् जानकारी नहीं होने पर उनकी बराबरी के लिए जो प्रमाण लिया जाता है, वह 'अर्थापत्ति' है । बटुः पीनो दिवा नात्ति रात्रावित्यर्थतो यथा । पञ्चप्रमाणासामर्थ्ये वस्तुंसिद्धिरभावतः ॥ 309 ॥ जिस प्रकार विद्यार्थी दिन में भोजन नहीं करता तब भी पुष्ट है, इस कथन का बराबर अर्थ होने के लिए 'रात को आहार करता है' ऐसी कल्पना की जाती है तो 'अर्थापत्ति' है । उक्त पाँचों प्रमाणों से यदि कोई सिद्धि नहीं हो तो वह 'अभाव' या अनुपलब्धि प्रमाण से सिद्ध हो सकती है यथा- कोठरी में कलश नहीं, कारण ? पता नहीं चलता- इस प्रकार से 'अभाव' प्रमाण होता है । अन्यदप्याह - स्थापितं वादिभिः स्व स्व मतं तत्वप्रमाणतः । तत्वं सत्परमार्थेन प्रमाणं तत्वसाधकम् ॥ 310 ॥ इस प्रकार वादियों ने तत्त्वप्रमाण से अपने-अपने मत को इसी प्रकार स्थापित किया है। परमार्थ से जो सत्य है वह तत्त्व और तत्त्व का साधक प्रमाण कहलाता है। सन्तु शास्त्रणि सर्वाणि सरहस्यानि दूरतः । एकमप्यक्षरं सम्यक् शिक्षितं निष्फलं नहि ॥ 311॥ मान्यता है कि सर्वशास्त्र और उनके रहस्यों से दूर रहो किन्तु यदि एक अक्षर भी सम्यक् प्रकार से सीखा गया हो, तो वह व्यर्थ नहीं जाता है । इत्यमनन्तर वचनव्यवहारनिर्णयं - विमर्शपूर्वकं स्वार्थ स्थापकं हेतुसंयुतक् । स्तोकं कार्यकरं स्वादु निगर्वं निपुणं वदेत् ॥ 312 ॥ बुद्धिमान मनुष्य को प्रयोजन प्रकट करने के अर्थ में थोड़ा, मधुर, अहङ्कार रहित और कार्य का साधन हो जाए, ऐसा वचन सयुक्ति और भलीभाँति विचार कर बोलना चाहिए। उक्तः सप्रतिभो ब्रूयात्सभायां सूनृतं वचः । अनुक्लण्ठमदैन्यं च सार्थकं हृदयङ्गमम् ॥ 313 ॥ किसी बैठक, सभा या पञ्चायत में जब कोई परामर्श लें तो सुज्ञ व्यक्ति को
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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