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________________ 216 : विवेकविलास घृताद पेयं दष्टेन भक्ष्यं चिर्भटिकादिकम्। दंशे कर्णमलो बद्ध्यश्चूर्णं वाभिनवं क्षणात्॥241॥ दंशित मनुष्य को घृत पान, चिर्भटिका (चरबोटी) आदि भक्षण करना, दंशस्थल पर कान का मैल या कलई का चूना, अराईश को बाँध देना चाहिए। अन्यदप्याह - पुनर्नवायाः श्वेताया गृहीत्वा मूलमम्बुभिः। पिष्टं पाने प्रदातव्यं विषार्तस्यार्तिनाशनम्॥ 242॥ विष से पीड़ित मनुष्य को सफेद पुनर्नवा के मूल को पानी में घिसकर पिलानी चाहिए, इससे विष की पीड़ा दूर होती है। अन्यदप्याह - कन्दः सुदर्शनायाश्च जलैः पिष्टो निपीयते। अथवा तुलसीमूलं निर्विषत्वविधित्सया॥243॥ विष निवारण की इच्छा से सुदर्शन का कन्द अथवा तुलसी की जड़ पानी में घिसकर पिलानी चाहिए। अन्यदप्याह - जलपिष्टैरगस्त्यस्य पत्रैर्नस्ये कृते सति। राक्षसादिकदोषेण विषेण च विमुच्यते॥ 244॥ यदि अगस्त के पत्र को पानी में पीसकर नाक में डालें अर्थात् उसका नस्य प्रयोग करने से राक्षसादि और विष की पीड़ा का निवारण हो जाता है। अथ षड्दर्शन विचारक्रमः षण्णां दर्शनानां नामान्याह - जैनं मैमांसकं बौद्धं साङ्ख्यं शैवं च नास्तिकम्। स्वस्वतर्कविभेदन जानीयाद्दर्शनानि षट् ॥ 245॥ छह दर्शनों की मान्यता है- 1. जैन, 2. मीमांसक, 3. बौद्ध, 4. सांख्य, 5. शैव और 6. नास्तिक या चार्वाक। ये अपने-अपने तर्क के भेद से सिद्ध हुए जानने चाहिए।" ............................ * इस सम्बन्ध में कई उपाय गरुडपुराण और अग्निपुराणादि में वर्णित हैं, जिज्ञासु को वहाँ देखना चाहिए। **यह ग्रन्थकार की मान्यता है। अन्यथा वेदान्त, न्याय, सांख्य, योग, वैशेषिक और मीमांसा दर्शनों की मान्यता है- बौद्धं नैयायिकं साङ्ख्यं जैनं वैशेषिकं तथा। जैमिनीयं च नामानि दर्शनानामून्यहो॥ (षड्दर्शन. दर्शननाम. 3) विवेकविलास में शैव के साथ नैयायिक और वैशेषिक का समावेश किया गया है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने 'षड्दर्शनसमुच्चय' में इन छहों दर्शनों का विवेचन किया है। उस पर गुणरत्नसूरि कृत तर्करहस्यदीपिका, सोमतिलकसूरि कृत लघुवृत्ति और अज्ञातकर्तृक की अवचूर्णि प्राप्त होती है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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