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________________ 206 : विवेकविलास दर्पणे सलिले वापि स्वमुखस्यानिरीक्षणम्। न दृशोः पुत्तिका स्पष्टा पुरस्थैरवलोक्यते॥ 186॥ . शोफः कुक्षौ नखानां च मालिन्यं सहसा तथा। स्वेदः शूलं गले भक्ष्यप्रवेशो न मनागपि॥ 187 ॥ उत्कम्पः पुलको दन्त घर्षश्चाधरपीडनम्। सीत्कारस्तापजडते कूजनं च मुहुर्मुहुः॥188॥ नेत्रयोः शुक्लयारेह्नि रक्तयोः सायमेव च। नीलयोर्निशि मृत्युः स्यात्तस्य दष्टस्य निश्चितम्॥ 189॥ ... इसी प्रकार अपनी जिह्वा और नासिका के अग्रभाग को न देख सके, नासिका के बदले मुँह में से श्वास लेने लगे, आँख और मुँह खुला रहे, चन्द्रमा हो तो सूर्य दीखे, काँख, जीभ और दोनों कान में काक के पद जैसा नीलवर्ण का चिह्न दीखे. दर्पण और जल में अपना चेहरा न दीखे, आँख की कालिमाएँ सम्मुख बैठे हुए को न दीखे, उदर पर शोजिस चढ़े, नाखून पूरी तरह काले पड़ जाए, पसीना और शूल हो, कोई वस्तु निगली न जा सके, चक्कर आएँ, रोमाञ्च हो, दन्त घीसें, ओठ चबाए, मुंह से सीत्कार करे, बारम्बार ताप और मूर्छा हो और हुँकार करे, आँखें दिन को सफ़ेद रहे व सन्ध्या को लाल हो जाए और रात को काली पड़ जाएँ- ये सारे लक्षण जिस व्यक्ति के दिखाई दें उसे विषग्रस्त समझना चाहिए, ऐसा व्यक्ति अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त होता है। दष्टस्य देहे. शीताम्बुधारासिक्तेर्भवेद्यदि। रोमाञ्चः कम्पनाद्यं वा तदा दष्टोऽनुगृह्यते॥190॥ विष से पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर ठण्डे पानी की धार डालने पर यदि रोमांश्च हो या हलचल करें तो मन्त्र, औषधी आदि से उपचार आरम्भ करना चाहिए, इससे वह शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा। .... यो हस्तनखनिर्मुक्तैः पयोबिन्दुभिराहते। , निमीलयति नेत्रे स्वेयमस्तस्मिन्न सोद्यमः॥ 191॥ विष पीड़ित जो मनुष्य अपने ही नाखूनों से पानी के बिन्दु आँखों में छिड़कने पर अपनी आँखें मूंदने का प्रयास करता हो, वह मृत्यु नहीं पाता है। यस्य पाणिनखासक्त मांसेऽन्यनखपीडिते। जायते वेदना तस्य नान्तको भजतेऽन्तिकम्। 192॥ विष पीड़ित के हाथ के नख को दबाकर देखना चाहिए, यदि दंश पीड़ित वेदना अनुभव करता हो तो वह नहीं मरेगा, ऐसा जानना चाहिए।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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