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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 191 प्लक्षद्रोगोदयं विद्यादश्वत्थात्तु सदा भयम् । नृपपीड़ा वटाने नेत्रव्याधिमुदुम्बरात् ॥ 106 ॥ यदि घर में प्लक्ष वृक्ष हो तो रोग होता है; पीपल हो तो सदा भय उत्पन्न करता है; बरगद हो तो राजा का उपद्रव होता है और गूलर हो तो नेत्रव्याधि होती है । लक्ष्मीनाशकरः क्षीरी कण्टकी शत्रुभीप्रदः । • अपत्यचः फली तस्मादेषां काष्ठमपि त्यजेत् ॥ 107 ॥ खिरनी (दूध वाले पौधे, आक आदि) वृक्ष घर में हो तो लक्ष्मी का विनाश होता है। कांटे वाले वृक्ष हों तो शत्रु का भय पैदा करते हैं; फल वाला वृक्ष हो तो सन्तति का नाश होता है। अतएव ऐसे वृक्ष का काष्ठ भी काम में नहीं लेना चाहिए। कश्चिदूचे पुरो भागे वटः श्लाघ्य उदुम्बरः । दक्षिण पश्चिमे भागेऽश्वत्थः प्लक्षस्तथोत्तरे ॥ 108 ॥ इति वास्तुविचार: । किसी का यह मत भी है कि भवन के आगे दक्षिण भाग में गूलर, पश्चिम भाग में पीपल और उत्तर भाग में प्लक्ष को अच्छा जानना चाहिए । अथ शिष्यावबोधक्रमः । विद्यारम्भार्थ वारविचारं - भूमि आठ गुणी हानिकारक है। अस्तु, इन छाया से भयभीत रहते हुए ही, इन छायाओं को छोड़कर ही घर बनाएँ क्योंकि यह एक ध्रुव सत्य मानकर चलें कि वृक्षों की और देव मन्दिरों की छाया घरों पर नहीं पड़े। यही शुभप्रद है। ऐसे में छायाओं को त्यागकर ही घर बनाएँ। जिन वृक्षों, प्रासादों और गुल्मों से दोपहर में होने वाली छाया हवेलियों और घरों पर पड़ती है, वह अवश्य ही त्याज्य है परन्तु जो छाया उन घरों और हवेलियों से नीचे ही रह जाती है, वह निन्दित नहीं समझी जाती हैवेणुगुल्मलताच्छाया द्विगुणां मध्यदूषिता । त्रिगुणा पुन्नागवृक्षैः क्षीरवृक्षैश्चतुर्गुणा ॥ पञ्चधाश्वत्थवृक्षैश्च षड्धा धात्री महीरुहैः । सप्तधा पूर्णवृक्षैश्च लिङ्गच्छाया तथाष्टधा ॥ एताश्च्छायाः परित्यज्य वेश्म कुर्यादथाभयम्। वृक्षप्रासादयोरच्छायां गृहे त्यक्ता शुभप्रदा ॥ द्वयोः प्रहरयोश्च्छाया वृक्षप्रासादगुल्मजा । हर्म्यगृहे तथैवं स्यादधः स्तान्नैव निन्दिता ॥ (अपराजित. 51, 30-33 ) * जिस घर में आक, अशोक, अश्वत्थ, केतकी, बीजोरा (बीजपूरक, जम्बीर) के वृक्ष उगते हैं, उस घर में कभी भी वृद्धि, सम्पन्नता, सुख आदि नहीं बढ़ते । दाड़िम, हल्दी, श्वेता, गिरिकर्णिका आदि वृक्षों को अपनी भलाई चाहने वाले व्यक्ति कभी भी अपने गृह के द्वार के पास रोपण न करें। इसी तरह उग्रतम समझे जाने वाले वृक्ष, कड़वे वृक्ष, काँटों वाले वृक्ष, सुनहरे पुष्पों वाले, कनेर के वृक्ष भी घर के पास नहीं रोपण करे। बरगद, उदुम्बर, पलाश और सुपाड़ी के वृक्ष घरों के पास हों तो वे भी वर्जनीय है क्योंकि इनके रहते हवेली और घरों में सम्पन्नता की वृद्धि नही होती है— अका अशोका अश्वत्थाः केतकीबीजपूरकाः । यस्मिन् गृहे प्ररोहन्ति तद् गृहं नैव वर्द्धते ॥ दाडिमं च हरिद्रां च श्वेतां च गिरिकर्णिकाम् । यदीच्छेदात्मनः श्रेयो गृहद्वारे न रोपयेत् ॥ त्यक्त्वा चोग्रतमं वृक्षं कटुकं कण्टकान्वितम् । अपि सौवर्णिकान्वृक्षान् गृहाश्रये न रोपयेत् ॥ न्यग्रोधोदुम्बरप्लक्षांस्तथा वै कार्मुकादिकान् । वर्जयेद् गृहमाश्रित्य हर्म्यवृद्धिर्न विद्यते ॥ (अपराजित. 51, 34-37 )
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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