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________________ 164 : विवेकविलास जहाँ बालक राजा अथवा वैराज्य ं हों या फिर ( दो राजा हों ) स्त्री राज्य * हो - वहाँ विवेकी पुरुषों को नहीं बसना चाहिए । देशविषयार्थनिमित्तन्यवलोकननिर्देशं - स्ववासदेशक्षेमाय निमित्तान्यवलोकयेत् । तस्योत्पातादिकं वीक्ष्य त्यजेत्तं पुनरुद्यमी ॥ 5 ॥ व्यक्ति को अपने निवास क्षेत्र और समस्त देश के क्षेम-कल्याण के लिए निमित्त - शकुन का अवलोकन करते रहना चाहिए। यदि कभी कोई उत्पात दिखाई दे तो उस स्थान अथवा देश का उद्यमी पुरुष को शीघ्र त्याग करना चाहिए। अथ निमित्तक्रमे उत्पातवर्णनं प्रकृतस्यान्यथाभाव उत्पातः स त्वनेकधा । स यत्र तत्र दुर्भिक्षं देशराज्यप्रजाक्षयः ॥ 6 ॥ ब्रह्माण्ड जो वस्तु अपने जिस स्वरूप में नित्य रहती है, उसमें कोई परिवर्तन होना सामान्यतः उत्पात कहलाता है। इसके अनेक प्रकार हैं। वह उत्पात जहाँ हो, वहाँ दुर्भिक्ष, देश और राज्य का भङ्ग और जनता का विनाश कहा जाता है। अथ दैवोत्पात सफलमाह ― - देवानां वैकृतं भङ्गश्चित्रेष्वायतनेषु च । ध्वजश्चोर्ध्वमुखो यत्र तत्र राष्ट्राद्युपप्लवः ॥ 7 ॥ जहाँ चित्रार्चा अथवा देवालय की प्रतिमाओं के स्वरूप में कुछ अन्तर हो अथवा भङ्ग दिखाई दे, ध्वजा ऊँची चढ़ती हुई दीखे तो वहाँ राष्ट्रादि का उपद्रव होता है। मृगपक्षिवैकृत्यं सफलं - * जलस्थलपुरारण्यजीवान्यस्थानदर्शनम् । शिवाकाकादिकाक्रन्दः पुरमध्ये पुरच्छिदे ॥ 8 ॥ जहाँ जलचर जीव भूमि पर और भूचर जीव जल में; नगर के जीव वन में वैराज्य का वर्णन महाभारत के शान्तिपर्व, अग्निपुराण आदि में आया है। जिस काल में राजा की उत्पत्ति नहीं हुई और जहाँ पर जिसकी लाठी, उसकी भैंस जैसा शासन चलाया जाता था, उस अवस्था का नाम विराज या वैराज्य रहा है। * ** स्त्रीराज्य का वर्णन वात्स्यायन के कामशास्त्र, बृहत्संहिता (स्त्रीराज्यनृसिंहवनखस्थः ॥ 14, 22 ) इत्यादि में देशाचार के सन्दर्भ में मिलता है। यह राज्य कश्मीर से कहीं आगे विद्यमान भी रहा है। ॐ वराहमिहिर कृत बृहत्संहिता, समाससंहिता, अद्भुतसागर और देवतामूर्तिप्रकरणं में इन अद्भुतों उत्पातों या वैकृतों का विस्तार से वर्णन आया है। समाससंहिता में कहा है- - य: प्रकृतिविपर्यासः सर्वः सङ्क्षेपतः स उत्पातः । क्षितिगगन दिव्यजातो यथोत्तरं गुरुतरो भवति ॥ (बृहत्संहिता भट्टोत्पलीयविवृति 44, 1 पर उद्धृत) -
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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