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________________ अथ वर्षचर्या नाम सप्तमोल्लासः : 161 कलावान मनुष्यों को इस जीवन में कोई ऐसी कला-वस्तु अवश्य हासिल करनी चाहिए कि जिससे निधनोपरान्त पवित्र जन्म निश्चय पूर्वक प्राप्त हो सके।* सधर्माणधर्माचार्यश्च पूजननिर्देशं प्रतिवर्ष सहर्षेण निजवित्तानुमानतः । पूजनीयाः सधर्माणो धर्माचार्याश्च धीमता ॥ 6 ॥ बुद्धिमान पुरुष को प्रतिवर्ष अपने वित्त से यथा - सामर्थ्य सहधर्मी और अपने धर्माचार्यों का हर्षपूर्वक पूजन करना चाहिए। वृद्धजनसम्मानं च तीर्थसेवननिर्देशं - - गोत्रवृद्धा यथाशक्ति सम्मान्या बहुमानतः । विधेय तीर्थयात्रा च प्रतिवर्षं विवेकिना ॥ 7 ॥ विवेकी पुरुष को चाहिए कि वह अपने कुल के वृद्ध तथा सम्मान्य पुरुषों का यथाशक्ति प्रतिवर्ष बहुत मान से सत्कार, बहुमान करे ।" अपने कल्याण के लिए प्रति वर्ष ही तीर्थाटन भी करना चाहिए। प्रतिसंवत्सरं ग्राह्यं प्रायश्चित्तं गुरोः पुरः । शोध्यमानो भवेदात्मा येनादर्श इवोज्ज्वलः ॥ 8 ॥ इसी प्रकार प्रतिवर्ष गुरु की सन्निधि में पहुँचकर प्रायश्चित-आलोयना ग्रहण करनी चाहिए। इससे अपनी आत्मा दर्पण के समान निर्मल होती है। पित्रादिदिवस कार्यनिर्देशं - जातस्य नियतो मृत्युरिति ज्ञापयितुं जने । पित्रादिदिवसः कार्यः प्रतिवर्षं महात्मभिः ॥ 9 ॥ जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है - ऐसा लोगों को ज्ञात करने के लिए महात्मा पुरुषों के अपने पिता-माता आदि के पुण्य-दिवस पर (बरसी, श्राद्ध) प्रतिवर्ष करना चाहिए। युगप्रधान जिनदत्तजी का यह निर्देश बहुत उपयोगी है। यह जीवन को सार्थक करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सोच है। निधनोपरान्त यशः काया के निमित्त भी इस प्रकार का विचार होना चाहिए, जैसा कि भर्तृहरि ने कहा है- - जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धा कवीश्वराः । नास्ति येषां यशः काये जरा मरणजं भयम् ॥ (नीतिशतक 24 ) - ** मनु का भी निर्देश है— अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ॥ (मनुस्मृति 2, 121 ) गीता में भी कहा है- - जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । (गीता 2, 27 ) x यह मान्यता है कि इससे पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और अभिलषित वस्तुओं की भी प्राप्ति होती है, जैसा कि जाबालि का मत हैकृत्वा श्राद्धं कामांश्च पुष्कलान् ॥ पुत्रानायुस्तथाऽऽरोग्यमैश्वर्यमतुलं तथा । प्राप्नोति पञ्चमांन्
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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