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________________ अथ ऋतुचर्या नाम षष्ठोल्लासः ॥ 6 ॥ अथोल्लासप्रयोजनाह - कालमाहात्म्यमस्त्येव सर्वत्र बलवत्तरम् । ऋत्वौचित्यात्तदाहार विहारादि समाचरेत् ॥ 1 ॥ सर्वत्र काल माहात्म्य अपना प्रबल सामर्थ्य रखता है। इसलिए कालानुसार ऋतु' को जैसा उचित लगे, उस रीति से आहार-विहार आदि करना चाहिए । 1. वर्ष में ऋतुएँ छह हैं। चैत्र - वैशाख में वसन्त ऋतु; ज्येष्ठ-आषाढ में ग्रीष्म; श्रावण-भाद्रपद में वर्षा; आश्विन-कार्तिक में शरद; मार्गशीर्ष पौष में हेमन्त और माघ फाल्गुन में शिशिर ऋतु होती है। षड्र्तुचर्यावर्णनं प्रथमे वसन्तचर्यां - ――――― वसन्तेऽभ्यधिकं क्रुद्धः श्रेष्माग्निं हन्ति जाठरम् । तस्मादत्र दिवास्वापं कफकृद्वस्तु च त्यजेत् ॥ 2 ॥ वसन्त ऋतु में कफ का अतिशय प्रकोप होता है और उससे लोगों की जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। इसलिए इस ऋतु में दिन को निद्रा लेनी चाहिए और कफ को बढ़ाने वाली समस्त वस्तुओं को वर्जित जानना चाहिए। व्यायामधूमकवल ग्रहणोद्वर्तनाञ्जनम् । वमनं चात्र कर्तव्यं कफोद्रेकनिवृत्तये ॥ 3 ॥ वसन्त में कफ के प्रकोप की शान्ति के निमित्त व्यायाम और धूमपान करने चाहिए। मुँह में औषधी का कवल लेना, विलेपन करना, आँखों में अञ्जन और औषधी लेकर वमन भी करना चाहिए। भोज्यं शाल्यदि चास्त्रिग्धं तिक्तोष्णकटुकाञ्चितम् । अतिशीतं गुरु स्निग्धं पिच्छिलामद्रवं नतु ॥ 4 ॥ इस ऋतु में बहुत स्निग्ध नहीं और जिसके भीतर तीखा और कडुआ रस हो, ऐसा चावल आदि अन्न आहार में गरम लेना चाहिए। इसके विपरीत बहुत ठण्डा, पचने में अधिक समय लेने वाला, घृतादि स्निग्ध वस्तुएँ, चिकना, कच्चा और पतला अन्न इस ऋतु में भक्षण नहीं करना चाहिए ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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