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________________ यात्क 144 : विवेकविलास यत्किञ्चिन्मधुरं स्निग्धं बृंहणं बलवर्धनम्। मनः प्रह्लादनं चैव तत्सर्वं वृष्यमुच्यते॥ 213॥ ऐसी वस्तुएँ जो मधुर, चिकनी, पुष्ट, बल की वृद्धि और हृदय में हर्षोत्पन्न करने वाली हों, वे सब वृष्य कहलाती हैं। (जैसे- दूध, उड़द, कौञ्च बीज, तालमखाना, शतावरी, अश्वगन्धा, श्वेतमूसली जैसे पदार्थ इसी गुण वाले हैं)। जीवस्य गर्भकालेस्थित्यादीनां - पितुः शुक्रं जनन्याश्च शोण्तिं कर्मयोगतः। आसाद्य कुरुते जीवः सद्यो वपुरुपक्रमम्॥214॥.. गर्भकाल में जीव पिता के शुक्र एवं माता के रुधिर को कर्मयोग से पाकर तत्काल ही अपना शरीर गठित करने लगता है। गर्भेजीवस्य सप्तसप्तभि अहोरात्रानुसारेण क्रमाह - । भवेदेतदहोरात्रैः सप्तभिः सप्तभिः क्रमात्। कललं चार्बुदं चैव ततः पेशी ततो घनः॥215॥ गर्भ में शुक्र-रज समिश्रण के साथ ही सात दिनों में कलल (रज-शुक्र मिश्रण) रूप तैयार होता है। अगले सात दिनों में कललार्बुद (बुलबुले जैसा) बनता है। इसके बाद के सात दिन में अर्बुद की थैली बनती है और अगले सात दिन में उस थैली का घनाकार तैयार होता है। मासानुसार गर्भतौलप्रमाणाह - प्रथमे मासि तत्तावत्कर्षन्यूनं पलं भवेत्। द्वितीयेऽभ्यधिकं किञ्चित्पूर्वस्मादथ जायते ॥ 216॥ गर्भ पहले मास में 150 रत्ती के बराबर तौल का होता है और दूसरे मास में पहले मास की अपेक्षा थोड़ा अधिक होता है। । अधुना दोहदविचारं - जनन्याः कुरुते गर्भस्तृतीये मासि दोहदम्। गर्भानुभावतश्चैत दुत्पद्येत शुभाशुभम्॥ 217॥ * वराहमिहिर ने गर्भकालीन मासाधिपति के लिए 'बृहज्जातक' एवं 'लघुजातक' में कहा है कि गर्भ के पहले मास में कलल (रज-वीर्य मिश्रण), दूसरे मास में घन (पिण्ड), तीसरे मास में अङ्कर (अवयव), चौथे मास में अस्थि, पाँचवें मास में चर्म, छठे मास में अङ्गज या केश और सातवें मास में चैतन्य होता है। सातों मासों के अधिपति क्रमशः शुक्र, मङ्गल, गुरु, सूर्य, चन्द्र, शनि और बुध होते हैं। इसके बाद आठवें, नवें और दसवें मास के स्वामी क्रमशः लग्नेश, चन्द्र और सूर्य होते हैं। महीनों के अधिपति के शुभाशुभत्व से गर्भ का शुभ या अशुभ फल होता हैकललघनाङ्करास्थिचर्माङ्गजचेतनता: सितकुजजीवसूर्यचन्द्रार्किबुधाः परतः । उदयपचन्द्रसूर्यनाथा: क्रमशो गदिता भवति शुभाशुभं च मासाधिपतेः सदृशम् ॥ (बृहज्जातक 4, 16)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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