SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 127 एकस्मिन् कूपके स्थूल बहुरोमसमन्विता। सपुष्पनखरा श्वेतनखी शूर्पनखी तथा॥ 113॥ उत्कटस्नायुदुर्दशी कपिलद्युतिधारिणी। अतिश्यामातिगौरा च अतिस्थूलातितन्विका॥ 114॥ अतिदीर्घातिह्रस्वा च विषमाङ्ग्यधिकाङ्गिका। .. हीनाङ्गी शौचविकला सूक्ष्म रूक्ष! )कर्कशकाङ्गिका॥ 115॥ इसी प्रकार से जिस स्त्री के शरीर के रोमकूप में एक से अधिक मुख वाले और मोटे रोम निकलते हों; जिसके नख फूले हुए, सफेद या शूर्प जैसे हों; जिसकी नसें तेज न होने के कारण नहीं दीख सके ऐसी हों; जिसके शरीर का कान्ति भूरे वर्ण की हो; जो बहुत काली; बहुत गोरी; बहुत मोटी; बहुत पतली; बहुत लम्बी, बहुत छोटी; बिखरे हुए अङ्गवाली हो; जिसके शरीर में अङ्गली व अन्य अवयव न्यूनाधिक हो, जिसकी चमड़ी शुष्क और सख्त हो और जो शरीर की पवित्रता न रखती हो (उसे दोष सहित जानना चाहिए)। सञ्चारिष्णुरुगाघ्राता( -स्वरुगाकान्ता!) धर्मविद्वेषिणी तथा। धर्मान्तररता चापि नीचकर्मरतापि वा ॥ 116॥ अजीवत्प्रसवस्तोक प्रसवस्वसृमातृका। रसवत्यादिविज्ञान रहितेदृक्कुमारिका॥ 117॥ .. दुःशीला दुर्भगा वन्ध्या दरिद्रा दुःखिताऽधमा। अल्पायुर्विधवा कन्या स्यादेभिर्दुलक्षणैः॥118॥(विंशत्या कुलकम्) इसके अतिरिक्त जिसके शरीर को सञ्चारी रोग हुआ हो; जो सर्वधर्म से द्वेषभाव रखती हो या परधर्म में आसक्त हुई हो; जो नीच कर्म में सहज लगाव रखती हो; जिसकी मां और बहन की सन्तति जिन्दा नहीं रहती हो या कम होती हों और जिसे रसोई इत्यादि जीवनोपयोगी कार्यों-कलाओं का उचित ज्ञान नहीं हो- ऐसे (उक्त बीस श्लोकों में वर्णित) समस्त दोषों वाली कन्या अपलक्षणतः दुराचारिणी, दुर्भाग्यवाली, वन्ध्या, दरिद्री, पीड़ित, अल्पायुषी, अधम अथवा विधवा होती है। उपाङ्गमथवाङ्ग स्याद्यदीयं बहुरोमकम्। वर्जयेत्तां प्रयत्नेन विषकन्यासहोदरीम्॥ 119॥ जिसके हाथ-पाँव इत्यादि अङ्ग और अङ्गुली इत्यादि उपाङ्ग अत्यधिक रोम वाले हों, उस कन्या को विषकन्या की सहोदरी जानकर प्रयत्नपूर्वक छोड़ देना चाहिए। अथावर्त्तलक्षणफलं कटीकृकाटिकाशीर्षोदरभालेषु मध्यगः। नासान्ते च शुभो न स्यादावर्तः सृष्टिगोऽपि सन्॥ 120॥
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy