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________________ 124: विवेकविलास कन्या में 1. पाँव और गुल्फ, 2. जांघ और जानु, 3. लिङ्ग और अण्ड, 4. नाभि और कटी, 5. पेट, 6. स्तन और हृदय, 7. जत्रु (ग्रीवा और भुजा का जोड़) और भुजा, 8. ओठ और कण्ठ, 9. नेत्र और भृकुटि, 10. कपाल और मस्तक - ये दश क्षेत्र बाल्यावस्था से ही शरीर में होते हैं । एकैकक्षेत्रसम्भूतं लक्षणं वाप्यलक्षणम् । दशभिर्दशभिर्वर्षैस्त्रीत्रोदत्ते निजं फलम् ॥ 94 ॥ उक्त एक-एक क्षेत्र के शुभाशुभ लक्षण स्त्री पुरुषों को क्रम से दस वर्ष में फल देने वाले कहे गए हैं। यत्पादाङ्गलयः क्षोणीं कनिष्ठाद्याः स्पृशन्ति न । एकद्वित्रिचतुः सङ्ख्यान् क्रमात्सा मारयेत्पतीन् ॥ 95 ॥ जिस स्त्री के पाँव की कनिष्ठा प्रमुख चार अङ्गुलियों में कनिष्ठा से लगाकर एक, दो, तीन अथवा चारों अङ्गुलियाँ चलते समय भूमिपर न अटकती हो वह स्त्री क्रमशः एक, दो, तीन और चार भर्तार का हनन करने वाली कही गई है। पादाङ्गुलीलक्षणं - यत्पादाङ्गुलिरेकापि भवेद्धीना कथञ्चन । येन केनापि सा सार्धं प्रायः कलहकारिणी ॥ 96 ॥ * जिस स्त्री के पाँव की एकाध अङ्गुली किसी प्रकार से छोटी हो तो वह स्त्री जिस किसी के साथ कलह करने वाली होती है । • अल्पवृत्तेन वक्रेण शुष्केणलघुनापि च । चिपिटेनातिरिक्तेन पादाङ्गुष्ठेन दूषिता ॥ 97 ॥ • जिस स्त्री के पाँव का अँगूठा किञ्चित् गोल, टेढ़ा, सूखा हुआ, छोटा, चपटा या लम्बा और दूसरी अङ्गुलियों से अलग पड़ गया हो, वह स्त्री दोषयुक्त होती है। कृपणा स्यान्महापाणिर्दीर्घपार्ष्णिस्तु कोपना । दुःशीलोन्नतपार्ष्णिश्च निन्द्या विषमपार्ष्णिका ॥ 98॥ जिस स्त्री के पाँव का तल या पटरी बड़ी हो वह कृपण होती है। लम्बी हो वह क्रोधी होती है। ऊँची हो वह दुराचारिणी और नीची हो वह निन्दनीय कही है। अन्यान्य अशुभलक्षणं - * जगन्मोहन में समुद्र का मत है - यस्या न स्पृशते भूमिमङ्गुली च कनिष्ठिका । भर्तारं प्रथमं हत्वा द्वितीयेन सह स्थिता ॥ यस्या न स्पृशते भूमिं कनिष्ठा विरला द्विजाः । सन्नतभ्रुकुटीगण्डा पुंश्चली चाप्यभागिनी॥ यस्या अनामिका ह्रस्वा तां विद्यात्कलहप्रियाम् । अङ्गुष्ठं तु व्यतिक्रम्य यस्याः पादे प्रदेशिनी ॥ कुमारी कुरुते जारं यौवनस्यैव का कथा (लक्षणप्रकाश पृष्ठ 133 ) .
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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