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________________ 112 : विवेकविलास सरोगः स्वजनद्वेषी कटुवाङ्मूर्खसङ्गकृत। शास्ति स्वस्य गतायातं नरो नरकवर्मनि॥25॥ जो मनुष्य रोगी, परिवार-द्वेषी, कटुवक्ता और मूर्ख लोगों की सङ्गति करने वाला हो, वह अपना नरक में से आना और निधनोपरान्त नरक में जाना बताता है। नासिकानेत्रदन्तोष्ठ करकर्णामिणा नराः। समाः समेन विज्ञेया विषमा विषमेण तु॥26॥ जिन लोगों के नाक, आँख, दन्त, ओष्ठ, हाथ, कान और पाँव- ये सात अवयव सीधे हों, वे मनुष्य स्वभाव के सीधे होते हैं और उपर्युक्त सातों अवयव जिसके वक्रीय हो उनको टेढ़े स्वभाव के जानने चाहिए। गत्यावयवानुसारेण यानादीनां लब्धिं गतिस्वरास्थित्वग्मांस नेत्रदिष्वङ्गकेषु च। यानमाज्ञा धनं भोगः सुखं योषित् क्रमाद्भवेत्॥27॥ मनुष्य की गति के अनुसार ही उसे वाहन, स्वर के अनुसार आज्ञा, शरीर की रचना से धन, चमड़ी से भोग, माँस से सुख और नेत्र से स्त्री की प्राप्ति कही जाती है अर्थात् गति आदि छह वस्तुएँ जिस प्रकार की हों, वैसे ही वाहनादि छहों वस्तुएँ सुलभ होती हैं। आवर्त्तादिलक्षणं च देहावयवफलादीनां - आवर्तो दक्षिणे भागे दक्षिणः शुभकृन्त्रणाम्। वामे वामेऽतिनिन्द्यश्च दिगन्यत्वे तु मध्यमः ॥28॥ पुरुष की दाहिनी ओर दक्षिणावर्त भौंरी हो तो शुभ और बायीं ओर वामावर्त हो तो बहुत ही अशुभ समझनी चाहिए। यदि दाहिनी ओर वामावर्त और बायीं ओर दक्षिणावर्त हो तो मध्यम जानना चाहिए। उत्पातः पिटको लक्ष्म तिलको मशकोऽव्रणः। स्पर्शनं स्फुरणं पुंसः शुभायाङ्गे प्रदक्षिणे॥29॥ __पुरुष की दाहिनी ओर कोई शकुन, फोड़ा, चिह्न (लाञ्छन), तिल और छिद्र रहित मस हो और उधर ही स्पर्श व स्फुरण हो तो शुभकारी होते हैं। वामभ्रुवां पुनर्वामेस्त्र्यंशकस्य नरस्य च। घातोऽपि दक्षिणे कैश्चिन्नरस्याले शुभो मतः॥30॥ .
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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