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________________ 108 : विवेकविलास बुद्धिमान मनुष्य को रात में देवपूजा, स्नान, दान, भोजन, कत्थे सहित ताम्बूल और परामर्श- इनका व्यवहार नहीं करना चाहिए। त्याज्य शयनं खट्वां जीवाकुलां ह्रस्वां भग्नां कष्टां मलीमसाम्। ग्रतिपादान्वितां वह्नि दारुजातां च सन्त्यजेत्॥6॥ . . कभी ऐसे खाट, पलङ्ग पर नहीं होना चाहिए जिसमें जूं-खटमल आदि पड़ गए हों। छोटी खाट, टूटी हुई, शयन करने वाले को कष्टप्रद, मैली खाट, पड़े पाए वाली और दग्ध लकड़ी से बनी खाट को त्याज्य जानना चाहिए। शुभाशुभशयनासनयोः शयनासनयोः काष्ठमाचतुर्योगतः शुभम्। पञ्चादिकाष्टयोगे तु नाशः स्वस्य कुलस्य च ॥7॥ चार काष्ठों से निर्मित पलङ्ग, बैठने का आसन और की शभकारी होती है। यदि पाँच अथवा उससे अधिक लकड़ी की बनाई गई हो तो उससे उसके प्रयोग करने वाले व उसके कुल का विनाश होता है। शयनस्थललक्षणं पूज्योर्ध्वस्थो न नामिनचोत्तरापराशिराः। नानुवंश न पादान्तं नागदन्तः स्वपेत्पुमान्॥8॥ जो अपने पूज्य हों (अन्न, गौ, गुरु, देवता) उनसे ऊँचे स्थान पर, भीगे हुए पाँव और उत्तर एवं पश्चिम दिशा की ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। इसी प्रकार पुरुष को कभी वंश-अनुवंश के नीचे, पादान्त और नागदन्त या नँगूचे के नीचे नहीं सोना चाहिए, यह घातक है। देवताधानि वल्मीके भूरुहाणां तलेऽपि च। तथा प्रेतवने चैव स्वपेन्नपि विदिक्शिराः॥१॥ कभी देव मन्दिर में; सर्प की बाँबी पर; (इमली आदि) वृक्षों के नीचे श्मशान और वन में नहीं सोए। कभी विदिशा में सिर रख भी नहीं सोना चाहिए। * वराहमिहिर ने कहा है- धान्यगोगुरुहुताशसुराणां न स्वपेदुपरि नाप्यनुवंशम्। नोत्तरापरशिरा न च नग्नो नैव चाचरणः श्रियमिच्छन्॥ (बृहत्संहिता, 52, 124) इसी प्रकार विश्वकर्मा का मत है- शय्यानुवंशविन्यस्तातुला हन्यात्कुटुम्बिनः । कर्तुः शय्या स्वतानस्था नागदन्ताः क्षयावहाः ॥ (तत्रैव भट्टोत्पलविवृति में उद्धृत) श्रीपति की भी यही उक्ति है- गोधान्यदेवाग्निगुरुपदिष्टान्स्वपन चैवापरसौम्यमूर्धाः । न चानुवंशो न जलार्द्रपादः श्रियोभिलाषी पुरुषो न नग्नः ॥ (रत्नमाला 17, 30)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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