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________________ 102 : विवेकविलास अग्नि में डाली जाएगी तो इन्द्रधनुष जैसे नाना वर्ण युक्त उसकी ज्वाला हो जाती है। मृत कलेवर जैसी उसमें से दुर्गन्ध उठती है और उसका तेज भी मन्द हो जाता है। शिरोऽर्तिः पीनसः श्रेष्मा लाला नयनयोस्तथा। आकुलत्वं क्षणाद्रोम हर्षस्तद्धूमसेवनात्॥84॥ विषमय वस्तु के धुंए से सिरदर्द होता है, श्लेष्मा व कफ बढ़ जाता है, आँख से पानी टपकने लगता है, आकुलता बढ़ती है और क्षणभर में रोमाञ्च होता प्रतीत होता है। विषदस्य परीक्षणं विषदुष्टाशनास्वादात्काकः क्षामस्वरो भवेत्। लीयते मक्षिका नात्र निलीना च विपद्यते॥85॥ विष मिश्रत अन्न को चखने पर गले में काक का पर्दा बैठ जाता है। उस अन्न पर मक्खियाँ नहीं बैठतीं और यदि बैठ भी जाए तो मर जाती हैं। अन्नं सविषमाघ्राय भृङ्गः कूजति चाधिकम्। सारिका सविषेऽन्ने तु विक्रोशति तथा शुकः॥86॥ विषमय अन्न देखकर भ्रमर अधिक गुञ्जार करता है। मैना (वमन करती हैं) और तोता विषमय अन्न सूंघकर बहुत शोर करता है। विषान्नदर्शनान्नेत्रे चकोरस्य विरज्यतः। . म्रियते कोकिलो मत्तः क्रौञ्चो माद्यति तत्क्षणात्॥87॥ चकोर पक्षी के नेत्र विषाक्त अन्न देखते ही श्वेत हो जाते हैं। कोकिल पक्षी मदोन्मत्त होकर मर जाता है। क्रौञ्च पक्षी उसी समय मदोन्मत्त होता है। नकुलो हटरोमा स्यान्मयूरस्तु प्रमोदते। अस्य चालोकमात्रेण विषं मन्दायते क्षणात्।। 88॥ . नेवला यदि विष वाला अन्न देखे तो वह रोमाञ्चित हो जाता है। मयूर हर्षित होता है। मयूर की दृष्टि से पल भर में जहर मन्द हो जाता है। ----------- ----- * यह वर्णन मत्स्यपुराण से तुलनीय है। यही वर्णन विष्णुधर्मोत्तरपुराण में भी मिलता है। यथा समीपैर्विक्षिपेद् वह्नौ तदन्नं त्वरयान्वितः । इन्द्रायुधसवर्णं तु रूक्षं स्फोटसमन्वितम् ॥ एकावतं तु दुर्गन्धि भृशं चटचटायते। तभूमसेवनाजन्तोः शिरोरोगश्च जायते ॥ सविषेऽन्ने निलीयन्ते न च पार्थिव मक्षिकाः। निलीनाश्च विपद्यन्ते संस्पृष्टे सविष तथा॥ विरज्यति चकोरस्य दृष्टिः पार्थिवसत्तम। विकृति च स्वरो याति कोकिलस्य तथा नृप॥ गतिः स्खलति हंसस्य भृङ्गराश्च कूजति। क्रौञ्चो मदमथाभ्येति कृकवाकुर्विरौति च ॥ विक्रोशति शुको राजन् सारिका वमते ततः। चामीकरोऽन्यतो याति मृत्यु कारण्डवस्तथा ॥ मेहते वानरो राजन् ग्लायते जीवजीवकः । इष्टरोमा च शिखी विषसंदर्शनान्नृप। अन्नं च सविषं राजंश्चिरेण च विपद्यते ॥ तदा भवति निःश्राव्यं पक्षपर्युषितोपमम् । (मत्स्य. 219, 15-23)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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