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________________ समता करता है, तिलक वृक्ष के तो मात्र स्त्री के देखने से ही कलियां पाती हैं, तथा वह कुसुमित होता है। ___ एकेन्द्रिय वृक्ष तथा छोटे छोटे जीव जन्तु पशु पक्षी आदि जो कम संज्ञा वाले हैं वे भी मैथुन करते हैं । जोव के साथ मैथुन को भावना परंपरा से लगी हुई है। इन सबसे अधिक संज्ञा वाले या ज्ञान वाले हम मनुष्य, मैथुन (काम भोग) में कितने लिप्त हैं यह तो हम स्वयं ही जान रहे हैं । चार पुरुषार्थों (काम, अर्थ, धर्म-मोक्ष) में से पहला पुरुषार्थ तो सभी कर रहे हैं । अब दूसरा पुरुषार्थ, अर्थ-धन प्राप्ति तो केवल मनुष्य ही करता है । धन प्राप्ति के लिए कितना कष्ट, उठाना पड़ता है । झूठ-पाप-अन्याय-क्रूरता-निर्दयता-अपमानउलाहना आदि तो धन के सहयोगी हैं ही परन्तु इनसे भी बढ़कर है आत्मग्लानी, पराभव, खुशामद, असहनीय, कटु वचन श्रवण, अप्रिय, दुराचारी, कामी क्रोधी अफसर, या मदांध सेठ का आज्ञा पालन । सर्दी गर्मी भूख प्यास, तथा मुसाफिरी का कष्ट सहते हुए भी मनुष्य इस पुरुषार्थ को करते हैं। काम पुरुषार्थ करने वालों की अपेक्षा अर्थ पुरुषार्थ करने वाले कम हैं । इनसे भी कम धर्म पुरुषार्थ करने वाले हैं । सुबह से शाम तक धन की माला जपने वाले, धन के पीछे निद्रा या भोजन की भी परवाह न करने वाले व धन को आराध्यदेव समझने वाले मनुष्यों को धर्म के लिए अवकाश कहां है ? जिन्हें भी देखेंगे चलचित्र की तरह केवल धन के लिए ही फिर रहे हैं, बहुत ही कम भाग्यशाली लोग धर्म
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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