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________________ ५५ अच्छे बुरे; साहस अजोस् कृतज्ञ, कृतघ्न नज़र आते हैं । कुछ समय या दिन 14 फिचाहास. असे रहते हैं परन्तु दूसरा पिक्चर (चित्र) सामने आते ही पहले के सब विचार उड़ जाते हैं । ठीक यही स्थिति हमारे पूरे परिवार की है । जीवन में कितने ही प्रसंग ऐसे आते हैं जो हमें दुःख देने वाले होते हैं वे चाहे हमारे पिता, माता, स्त्री, भाई या भोजाई की तरफ से या स्वयं हमारी तरफ से उत्पन्न किए गए हों । पारिवारिक संबंधों को मधुर बनाये रखने की भावना होते हुए भी विचार व स्वभाव की भिन्नता से कई मतभेद व मनभेद उपस्थित हो जाते हैं जिससे पूरा वातावरण कटु, संतप्त व असहनीय हो जाता है । कभी कभी तो अपने कहलाने वालों की अपेक्षा पराए लोग सहयोगी, व सुखकर हो जाते हैं । यहां तात्पर्य इस बात का है कि इन सब संबंधों का गहराई से विचार कर मोह दशा को दूर करें। प्रत्येक प्राणी का प्रत्येक प्राणी के साथ सकर्त्तव्य प्रेम संबंध है, व पारिवारिक धर्म है उसे निभाते रहना चाहिए । मात्र सांसारिक संबंधों का वास्तविक स्वरूप समझाने के लिए शास्त्रकारों का उपरोक्त प्राशय है । पारिवारिक गूढ़ संबंध ( पिता पुत्र, माता पुत्र, भाई-भाई, भाई बहिन, पति पत्नि ) होते हुए भी कई घटनाएं ऐसी बनी हैं जो मोहनाश के ज्वलंत उदाहरण हैं । एक ने दूसरे का घात किया है। श्रेणिक-कोणिक, ब्रह्मदत्तचुलणी; रावण विभीषण, बाली सुग्रीव आदि । मृत्यु के पश्चात् धीरे २ सबको भुला दिया जाता है। नए संबंधों से मोह उत्पन्न होता है, वह भी मिटता है । यह क्रम बना ही रहता है।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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