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________________ अध्यात्म-कल्पद्रुम है (मन की शांति को न खोकर) प्रसन्न होता है, एवं विपरीत अवस्थायें (परगुण निंदा व आत्मप्रशंसा के समय) खेद पाता है ।। १६ ॥ उपजाति विवेचनकिसी मीटिंग के अध्यक्ष निर्वाचन के समय यदि अपने से कम गुणवान को चुना जाता हो अथवा राजनैतिक चुनावों के समय गुण होते हुए भी हमें न चुना जाता हो, उस वक्त अपने मन की क्या स्थिति होती है ? किसी ज्ञानी, विद्वान, कवि, कोकिलकण्ठ, दानेश्वरी या वैभवशाली की प्रशंसा होती हो और हमारा नाम भी कोई न लेता हो उस वक्त हमारे मन की क्या स्थिति होती है ? यदि उस वक्त हमें ईर्षा होती हो, जलन होती हो तो समझना चाहिए कि हम जो अपने आपको ज्ञानी, पंडित आदि समझ बैठे हैं वह भूल है । अभी हमारा स्तर बहुत नीचा है। सकारण या अकारण हम पर कोई क्रोध करता है, अपने अपराध को हम पर ढोलता है, संदेह द्वारा हमें आवेश में अप शब्द कहता है; निंदा करता है, अपनी साधारण हानि या अपमान के लिए हमें दोषी ठहरा कर विपरीत पाचरण करता है उस समय हम उस पर क्रोध न कर मन को वश में रखें, मन की शांति को बनाए हुए रखें तो हम ज्ञानी हैं नहीं तो उस सन्मुख व्यक्ति से भी निम्न श्रेणी के हैं, कारण कि वह तो अज्ञान से ऐसा कह रहा है जब कि हम ज्ञानी कहलाते हुए भी उसका प्रतिकार उसी की तरह कर रहे हैं । सच्चा ज्ञानी तो वही है जो आत्मप्रशंसा सुनकर या
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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