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________________ प्रयोजन पूर्व पुण्य के बिना प्राणी को सद्ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है । अनादि काल से चले आते हुए संसार में जीव अज्ञान दशा से चौरासी लाख योनियों में जन्मता है व मरता है। काल का शासन सर्वोपरि है । सतत बहने वाली महा नदी के समान यह तो निरंतर बहता ही रहता है, इसकी कोई मर्यादा या सीमा नहीं है । एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के प्राणी को अपना किया हुआ भुगतना पड़ता है। मोह दशा के कारण जीव अपना भान भूला हुवा है इसीलिए उसका पुनर्जन्म होता है । जीवन मरण की यह श्रङ्खला एक पहेली है। इस पहेली को सुलझाना ही तप है, योग है, ज्ञान है या परमात्मपद की प्राप्ति है। इस पहेली को सुगमता से समझने के लिए यह ग्रन्थ "अध्यात्मकल्पद्रुम" मार्गदर्शक है। . इस नाशवान, परिवर्तनशील संतप्त संसार में कौन अमर रहा है। जो जन्में हैं उनको मरना ही है यह तो ध्रुव सत्य है । चाहे हम पारिवारिक मोह से या नाटक सिनेमा के रंगीले वातावरण से इसको भुलाना चाहें तो भी कालदेव एक न एक दिन इसको सत्य करके बताएगा। इस दुःखभरे संसार की कैसी विचित्रता है। एक प्राणी अपना पेट भरने के लिए दूसरे जीवों को खाने के लिए दर से बाहर निकलता है तो दूसरा उसीसे अपनी भूख मिटा लेता है। एक अधिक धन के लोभ से बाजार में सट्टा खेलता है और चाहता है कि मैं भी पालीशान बंगले व मोटर रखू
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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