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________________ समता करुणा भावना का स्वरूप दीनेष्वार्तेषु भोतेषु याचमानेषु जीवितम् । प्रतिकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ॥ १५ ॥ अर्थ दीनों पर, आर्तों पर, भयभीत हुओं पर धन की भिक्षा मांगने वालों पर, जो उपकार बुद्धि है, उनको दुःख से छुड़ाने की जो बुद्धि है, वही करुणा कहलाती है ॥ १५ ॥ अनुष्टुभ विवेचन दीन-हीन बिचारा गरीब प्राणी अन्न के लिए बस्त्र के लिए या बीमारी के समय दवा के लिए दुःखी होता है उसे सहायता देना, करुणा है । मूक (बिना बोलने वाले) प्राणी मनुष्य की अपेक्षा भी अधिक करुणा के पात्र हैं । वे कुछ भी कहकर अपना दुःख प्रकट नहीं कर सकते हैं अतः उन पर अवश्य दया दृष्टि रखनी चाहिए । इनसे भी अधिक तो कीड़े मकोड़े मेंढक आदि उन छोटे २ जन्तुओं पर करुणा करना चाहिए जिन्हें हम अंधेरे में या उजेले में पैरों नीचे कुचलते जाते हैं। वे निरपराध प्राणी हमें काटते नहीं हैं, हमारा कुछ बिगाड़ते नहीं हैं, इसीलिए हम उनसे डरते नहीं हैं और बेपरवाही से चलकर या मिठाई खाकर दूना रास्ते में डालकर उन्हें खाने को बुलाते हैं और कुत्तों द्वारा चटवाते हैं या आंख सहित सूरदासों से कुचलवा देते हैं। मीठी वस्तु में सुगंध है जिस कारण से वे आते हैं और हम उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्षरीति से मार डालते हैं, अतः गन्ने, सीताफल, रायण, पाम या मिठाई खाकर उसके छिलके व दूने ऐसी जगह
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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