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________________ - समता २३ विवेचन- इन दोनों श्लोकों में इस ग्रंथ के सोलह अध्यायों का नाम निर्देश कर उपदेश दिया है जो प्रत्येक अध्याय में विवेचन सहित आप पढ़ेंगे । सोलह अध्याय वही है जो विषय सूचि में हैं । - समता अधिकार--भावनाभाने के लिए मन को उपदेश चित्त बालक मा त्याक्षी रजस्रं भावनौषधीः । यत्त्वां दुर्ध्यानभूता, छलयन्ति छलान्विषः ॥५॥ अर्थ- "हे चित्तरूप बालक ! तू भावनारूपी औषधि को अपने पास से कभी दूर मत करना जिससे दुर्व्यानरूपी भूत पिशाच जो सदा छल को खोजते रहते हैं, तुझे नहीं छल सकेंगें ॥ ५॥ .. अनुष्टुप .. विवेचन–समता आदि आध्यात्मिक विषय में यह आत्मा अभी बहुत पाछे है अतः उसके मन को बालक कहा गया है । लौकिक रूढ़ी को मानने वाले जिस प्रकार गले में मंत्रित (ताबीज़) मादलिया पहनकर यह मानते हैं कि देव दोष दूर हो गया और अब दुबारा वह न होगा इसी रूपक को लेकर यहां कहा गया है कि उत्तम भावना सदा मन में रखने से आर्द्र रौद्र ध्यान आदि का असर न होगा। परम शांति चित्त में रहेगी । चित्त का असंतुलन, व अस्थिरता, दूर होगी। भावनाओं का वर्णन आगे आएगा। समता का अर्थ है प्रत्येक दशा में चित्त को शांत रखना सुख-दुःख, हानि-लाभ, मानअपमान; संयोग-वियोग, सौभाग्य-दुर्भाग्य ; इष्ट-अनिष्ट ;
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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