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________________ २० अध्यात्म-कल्पद्रुम है । तप और वीर्य सहित होने से 'वीर' कहलाता है । व्युत्पत्ति से भी देखें कि :- विशेषेण ईरयति प्रेरयति कर्माणीति वीरः । अर्थात जो कर्मों को प्रेरित करता है, धक्का मारता है, आत्मा से अलग करके उन्हें निकाल फेंकता है वह 'वीर' है । ऐसे श्री वीर परमात्मा को नमस्कार करके मंगलाचरण किया है । आज हम अपने व्यवहारिक जीवन में प्रत्यक्ष देख रहे हैं और भुगत रहे हैं कि हमारे शत्रु और मित्र किस तरह कार्य कर रहे हैं । भौतिक कारणों द्वारा दंड - शिक्षा या सजा द्वारा जीते हुए शत्रु बढ़ते हैं, घटते नहीं हैं । अग्नि से अग्नि बढ़ती है अर्थात् क्रोध मान माया लोभ यादि के द्वारा शत्रुओं की वृद्धि होती है, कमी नहीं होती, परन्तु जिस प्रकार जल द्वारा अग्नि शांत होती है उसी प्रकार शांतरस के द्वारा, समता द्वारा बाहर के व अंदर के शत्रु जीते जा सकते हैं । उसी शांतिरस द्वारा महावीर प्रभु ने आत्मशत्रुओं को, कषाय तथा प्रष्ट कर्मों को जीता, अतः उनको नमस्कार कर उनका अनुकरण करना चाहिए जिससे शांतरस की प्राप्ति हो । व महावीर स्वामी - महावीर प्रभु आज से २५५५ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला १३ के दिन बिहार की वैशाली नगरी में सिद्धार्थ राजा के घर त्रिशाल राणी की कुक्षी से जन्मे । यशोदा से विवाह हुआ । एक पुत्री प्रियदर्शना नामक हुई । जन्म से दयालु वैराग्यवान थे । यज्ञ-हवन में धर्म के नाम पर होते हुए मूक पशुओं के बलिदानों ने उन्हें संसार के कल्याण के लिए ३० वर्ष में ही गृह त्याग करने को विवश किया । १२ वर्ष तक अनेक कष्ट सहन कर तप किया । इतने बड़े समय में उन्होंने
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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