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________________ (१०) आप श्री में तीन शक्तियां एक साथ विद्यमान थी, यह एक असाधारण बात है। स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, और न्याय शक्ति। इन तोनों का एक साथ होना प्रायः अनहोनी बात है। आज कल कई मुनिराज अवधान के प्रयोग करते हैं जिसकी सीमा १०० तक होती है और वे शतावधानो कहलाते हूँ, परन्तु श्री मुनि सुन्दरसूरीश्वरजी तो सहस्त्रावधानी थे। इसे स्मरण शक्ति की प्रबलता की पराकाष्ठा ही समझे । दक्षिण देश के अन्य कौम के विद्वानों ने "काली सरस्वती" का पद (विरुद) अर्पण किया था जो कवित्व शक्ति को अद्भुत चतुरता का द्योतक है। तर्क-न्याय को निपुणता के लिए मुझफर खान बादशाह ने, “वादीकुलषंढ़" का विरुद अर्पण किया था। ऐसे महान् विद्वान, व आत्मज्ञानी के द्वारा यह ग्रन्थ रचा गया है अतः यह कितना उत्तम व हितकर है यह तो पाठक स्वयं ही सोच लेंगे। संतिकरं स्तवन—जैनस माज में नवस्मरण का बहुत महत्व है। प्रत्येक धार्मिक कार्य में इसका पाठ होता है, कोई २ पुण्यशाली तो प्रति दिन इनका पाठ करते हैं । इन नौ में से तीसरा स्मरण, “संतिकरं" है। इस स्तवन की रचना भी आप श्री ने ही देवकुलपाटक में की थी। देलवाड़ा देलवाड़ा (मेवाड़-राजस्थान) या देवकुलपाटक नगर में संघ में अक्स्मात मरकी के उपद्रव से पीड़ित लोगों को देख कर अत्यंत करुणा वाले महात्मा मुनि सुन्दर सूरीश्वर जी ने सूरि मंत्र की प्राम्नाय वाला श्री शान्तिनाथ जिनका
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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