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________________ (१) मन के संबंध में पद्य यशोविजयजी कृत जब लग मन आवे नहिं ठाम । तब लग कष्ट क्रिया सवि निष्फल, ज्यों गगने चित्राम ॥१॥ करनी बिन तू करे रे मोटाई, ब्रह्मवती तुज नाम । आखर फल न लहोगें ज्यों जग, व्यापारी बिनु दाम ॥२॥ मुंड मुंडावत सब ही गडरिया, हरिण रोझ बन धाम । जटा धार वट भस्म लगावत, रासभ सहतुं घाम ॥३॥ एते पर नहिं योग की रचना, जो नहिं मन विश्राम । चित्त अंतर पर छलवेकु चितवत, कहा जपत मुख राम ॥४॥ वचन काय गोपे दृढ़ न धरे, चित्त तुरंग लगाम । तामे तु न लहे शिव साधन जिऊं कण सूने गाम ॥५॥ पढ़ो ज्ञान धरो संजम किरिया, न फिरावो मन ठाम । चिदानंद घन सुजस विलासी, प्रगटे प्रातम राम ॥६॥ (२) विनय विजयजी कृत मन न काहु के वश, मन किये सब वश । मन की सो गति जाने याको मन वश है ॥ १ ॥ पढ़ौ हो बहुत पाठ तप करो जैने पाहार । मनवश किए बिनु तप जप वश है ॥ २॥
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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